राज्यों के विधेयक रोकने पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, कहा- “राष्ट्रपति द्वारा दिए गए संदर्भ का उत्तर देना क्या गलत है?”
Supreme Court on Bill Timing:
राज्यों के विधेयक लंबे समय तक रोके जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महत्वपूर्ण टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक को लेकर संदर्भ भेजते हैं और राय मांगते हैं, तो उसमें गलत क्या है? साथ ही कोर्ट ने साफ किया कि यह सुनवाई तमिलनाडु मामले में दिए गए फैसले को प्रभावित नहीं करेगी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि अदालत केवल राष्ट्रपति द्वारा दिए गए संदर्भ का उत्तर दे रही है और तमिलनाडु मामले पर कोई फैसला नहीं देगी। पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी.एस. नरसिम्हा और ए.एस. चंदुरकर शामिल थे।
अदालत ने कहा कि संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति यदि अनुच्छेद 143(1) के तहत राय मांगते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट अपनी सलाह दे सकता है।
पृष्ठभूमि: तमिलनाडु का मामला
8 अप्रैल को जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों पर सहमति न देने के फैसले को “अवैध” और “मनमाना” बताया था। इसके साथ ही राष्ट्रपति को तीन महीने की समय-सीमा में विधेयकों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया गया था।
इसके बाद मई 2025 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी कि क्या राज्यपालों और राष्ट्रपति पर विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा थोपी जा सकती है।
राज्यों और केंद्र की दलीलें
- तमिलनाडु व केरल सरकारें – इनके वकीलों का कहना था कि राष्ट्रपति का यह संदर्भ स्वीकार्य नहीं है और इससे पहले से दिए गए फैसले प्रभावित हो सकते हैं।
- वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी – उन्होंने कहा कि इस संदर्भ के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से तमिलनाडु के फैसले को चुनौती दी जा रही है।
- के.के. वेणुगोपाल (केरल की ओर से) – उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 200 पहले ही कहता है कि राज्यपाल विधेयकों पर “यथाशीघ्र” निर्णय लें। ऐसे में नई समय-सीमा तय करना अनुचित होगा।
- केंद्र सरकार – केंद्र ने कहा कि राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए अदालत द्वारा तय समय-सीमा थोपना संविधान के ढांचे से बाहर होगा और इससे “संवैधानिक अव्यवस्था” पैदा हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
पीठ ने कहा कि अदालत केवल “सलाहकार क्षेत्राधिकार” में काम कर रही है और तमिलनाडु के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी। अदालत ने विपक्षी शासित राज्यों से सवाल किया कि यदि राष्ट्रपति खुद संदर्भ के जरिए राय मांग रहे हैं तो इसमें क्या आपत्ति है?

