राजीव प्रताप की रहस्यमयी मौत: 22 दिन बाद भी परिवार सड़क पर, मुख्यमंत्री ने दिया आश्वासन
रविवार 19 अक्टूबर, देहरादून – उत्तरकाशी के निडर पत्रकार राजीव प्रताप की रहस्यमयी मौत के 22 दिन बीत चुके हैं, लेकिन उनके परिवार को अभी तक न्याय नहीं मिल सका। दीवाली के त्योहार के बीच जब पूरा देश रोशनी में नहा रहा था, तब राजीव का परिवार देहरादून के गांधी पार्क के बाहर सत्याग्रह पर बैठा इंसाफ की गुहार लगा रहा था। सात महीने की गर्भवती पत्नी सड़क पर बैठी चीख-चीखकर न्याय मांग रही थी, मां रो-रोकर बेहाल हो रही थी, जबकि बूढ़े पिता और भाई परिवार को संभालने की कोशिश में जुटे थे। गांधी पार्क के गेट पर परिवार के साथ कई लोग धरने पर बैठे थे, जो मानते हैं कि राजीव की मौत को हादसा बताकर मामला दबाने की साजिश हो रही है।
वहीं सत्याग्रह के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने परिवार को अपने आवास पर बुलाकर मुलाकात की और उनकी मांगो को लेकर उन्हें आश्वासन दिया.

घटना का क्रम: लापता होने से शव मिलने तक
राजीव प्रताप 18 सितंबर की रात उत्तरकाशी से लापता हो गए थे। अगले दिन उनकी कार भगिरथी नदी में मिली, जो उत्तरकाशी से 5-8 किलोमीटर दूर थी। परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और बताया कि राजीव को खबरें दिखाने की वजह से जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं। पुलिस ने तलाश शुरू की, लेकिन 10 दिनों बाद 28 सितंबर को राजीव का शव जोशियाड़ा बैराज के पास मिला। एक निर्भीक पत्रकार की मौत ने उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक हाहाकार मचा दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर 1 अक्टूबर को स्पेशल जांच टीम (SIT) गठित की गई। कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए बीजेपी सरकार पर निशाना साधा।
SIT रिपोर्ट: हादसा या साजिश? परिवार के सवाल
SIT ने 3 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें राजीव की मौत को हादसा बताया गया। रिपोर्ट के अनुसार, राजीव ने हादसे के समय शराब पी थी, और पोस्टमार्टम में एक्सीडेंट की पुष्टि हुई। पुलिस ने कुछ CCTV फुटेज भी जारी किए, जिसमें राजीव नशे में गाड़ी गलत साइड से चला रहे दिखे। पुलिस ने इसे ‘ड्रिंक एंड ड्राइव’ का मामला करार दिया और कहा कि परिवार की अन्य शिकायतों पर कार्रवाई होगी। लेकिन परिवार का कहना है कि SIT ने उनसे कोई पूछताछ नहीं की, न ही रिपोर्ट सौंपने के बाद संपर्क किया। धमकी वाले एंगल की जांच भी नहीं हुई।
परिवार ने कई गंभीर सवाल उठाए हैं, जिनका जवाब पुलिस नहीं दे पाई:
- राजीव के शव पर केवल एक अंडरवियर के अलावा कुछ और क्यों नहीं था?
- उनके दोस्त ने नशे की हालत में गाड़ी ले जाने क्यों दी?
- धमकी देने वाले लोग कौन थे, और उनकी जांच क्यों नहीं हुई?
परिवार ने दोस्त पर भी साजिश का आरोप लगाया है। उनका मानना है कि यह हत्या है, और वे CBI या उच्च स्तरीय जांच की मांग पर अड़े हैं।
मुआवजा और रोजगार की मांग
परिवार ने मुआवजे के साथ राजीव की गर्भवती पत्नी को स्थायी रोजगार की भी मांग की है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों दल इस मुद्दे पर एकमत हैं कि परिवार को मुआवजा और रोजगार मिले, ताकि संकट की इस घड़ी में सहारा मिल सके।
पत्रकारिता पर सवाल: हादसा या दबाव?
परिवार का कहना है कि पुलिस धमकी वाले पहलू की अनदेखी कर रही है, ताकि साजिश का कोई सुराग न निकले। सवाल उठता है – क्या धमकी देने वाले वे लोग थे, जो राजीव की जनता से जुड़ी खबरों से परेशान थे? ईमानदार पत्रकारों की मौत चिंता का विषय है, और सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए जो परिवार को संतुष्ट करें। राजीव की मौत का मामला इतना सरल नहीं लगता, जितना पुलिस बता रही है। क्या इसकी गहन जांच होगी, या साजिश दब जाएगी? समय ही बताएगा।
राजीव प्रताप जैसे पत्रकारों का संघर्ष हमें याद दिलाता है कि सच्ची पत्रकारिता के लिए हिम्मत चाहिए। उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं, और उम्मीद है कि न्याय मिलेगा।