पत्रकार दंपती के साथ पुलिस की शर्मनाक हरकत, क्या ऐसा भी कर सकती है पुलिस
गुरुवार की दोपहर, नोएडा के सेक्टर 38 स्थित एक पेट्रोल पंप पर उस समय अराजक स्थिति बन गई जब पत्रकार दंपती अयंतीका पाल और राहुल साहा अपनी कार में पेट्रोल भरवा रहे थे। अचानक दिल्ली पुलिस की साइबर सेल से जुड़े तीन लोग – सब-इंस्पेक्टर ऋतु डांगी, हेड कांस्टेबल हरेंदिर, और कांस्टेबल अमित – सादी वर्दी में वहां पहुंचे और राहुल को पकड़ लिया।
🔴 क्या हुआ घटनास्थल पर?
तीनों पुलिसकर्मियों ने सीधे राहुल का हाथ पकड़ लिया और आरोप लगाया कि वह एक साइबर क्राइम मामले में आरोपी हैं, जिसका नाम भी राहुल है। राहुल साहा की पत्नी अयंतीका, जो खुद भी पत्रकार हैं, ने तुरंत अपना फोन निकाला और वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया। उन्होंने पुलिसकर्मियों से पहचान पत्र दिखाने की मांग की, लेकिन पुलिसकर्मी उन्हें नजरअंदाज करते रहे और जबरन राहुल को अपनी गाड़ी में बैठाने लगे।
जब अयंतीका ने इसका विरोध किया, तो एक पुरुष कांस्टेबल ने महिला कांस्टेबल से कहा, “खींचो इसको पीछे से।” यह सुनकर अयंतीका स्तब्ध रह गईं। उन्होंने अपना प्रेस आईडी दिखाया और बताया कि राहुल नोएडा में पत्रकार हैं और दोनों बंगाल से हैं, लेकिन पुलिस ने बिना पुष्टि किए कार्रवाई जारी रखी।
🟡 गलत पहचान और भारी लापरवाही
दरअसल, पुलिस किसी अन्य राहुल को ढूंढ रही थी, जो बहादुरगढ़ से ताल्लुक रखता है और साइबर क्राइम का आरोपी है। लेकिन मोबाइल लोकेशन के आधार पर वे पेट्रोल पंप पहुंचे और बिना उचित पुष्टि के राहुल साहा को ही पकड़ लिया क्योंकि उनका नाम और सामान्य हुलिया मिलता-जुलता था।
कुछ देर की बहस, वीडियो रिकॉर्डिंग और दबाव के बाद पुलिस ने आखिरकार राहुल का पहचान पत्र देखा और अपनी गलती स्वीकार की।
📝 माफीनामा—एक कागज पर हाथ से लिखा नोट
सब-इंस्पेक्टर ऋतु डांगी ने कार की बोनट पर खड़े होकर एक हाथ से लिखा माफीनामा दिया जिसमें लिखा था:
“SI Ritu Dangi, HC Harendir & Ct Anit, PS-Cyber, Shahdara misunderstood Mr Rahul Shah as our alleged person Mr Rahul and apologised on behalf of my team and in future this thing will not be done from our side.”
(नोट में कई व्याकरण और स्पेलिंग की गलतियां थीं।)
🛑 पुलिस की सफाई और पत्रकारों की पीड़ा
बाद में दिल्ली पुलिस की ओर से DCP प्रशांत गौतम ने बयान जारी कर बताया कि साइबर क्राइम मामले की जांच के दौरान मोबाइल सिग्नल के आधार पर पुलिस पेट्रोल पंप पहुंची थी। उन्होंने दावा किया कि किसी प्रकार की जबरदस्ती या दुर्व्यवहार नहीं हुआ और गलती का एहसास होते ही टीम ने माफी मांग ली।
लेकिन अयंतीका और राहुल का कहना कुछ और था —
“अगर हम पत्रकार न होते, तो आज जेल में होते। किसी ने हमारी बात नहीं सुनी होती।”
“हर बार वह दृश्य मेरी आंखों में घूमता है – कैसे मेरे पति को खींचा गया, कैसे हमें कुछ नहीं समझा गया। अगर हमारे पास कैमरा और प्रेस कार्ड नहीं होता, तो हमारी क्या हालत होती?”
⚠️ बड़ा सवाल: आम नागरिकों का क्या होता है?
इस घटना से यह सवाल उठता है कि—
- क्या दिल्ली पुलिस बिना पुष्टि के किसी को भी पकड़ सकती है?
- क्या मोबाइल लोकेशन ही गिरफ्तारी का आधार बन सकता है?
- जिनके पास प्रेस कार्ड या रिकॉर्डिंग की सुविधा नहीं है, उनके साथ ऐसी घटना होने पर कौन उनकी आवाज बनेगा?
इस घटना ने पुलिस की कार्यशैली, जवाबदेही और तकनीकी दक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, खासकर उस समय जब दिल्ली में साइबर अपराध जैसी जटिल चुनौतियों से निपटने की बात की जाती है।