कोरगा समुदाय की पहली महिला डॉक्टर बनीं डॉ. के. स्नेहा, संघर्ष और मेहनत से रचा इतिहास
कर्नाटक की डॉ. के. स्नेहा ने अपनी मेहनत, लगन और मजबूत इरादों के दम पर इतिहास रच दिया है। वे कोरगा समुदाय की पहली महिला डॉक्टर बन गई हैं। नई दिल्ली के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज से एमडी की पढ़ाई पूरी कर स्नेहा ने न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे कोरगा समुदाय का नाम रोशन किया है।
कोरगा समुदाय को देश के सबसे पिछड़े समुदायों में गिना जाता है, जहां उच्च शिक्षा आज भी एक सपना मानी जाती है। ऐसे में डॉ. स्नेहा की यह उपलब्धि पूरे समाज के लिए उम्मीद की एक नई किरण बनकर सामने आई है।
कुंडापुरा के गांव से दिल्ली तक का सफर
डॉ. स्नेहा कर्नाटक के कुंडापुरा तालुका के उल्टुरु गांव की रहने वाली हैं। वे गणेश वी. और जयश्री की बड़ी बेटी हैं। उन्होंने मंगलुरु के एजे मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की, इसके बाद नई दिल्ली जाकर पोस्टग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा हासिल की और एमडी की डिग्री प्राप्त की।
बचपन से ही स्नेहा पढ़ाई में बेहद मेधावी रहीं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अंकोला से शुरू की, इसके बाद कुंडापुरा के होली रोज़री स्कूल और हेब्री के चारा नवोदय स्कूल से हाईस्कूल तक की पढ़ाई पूरी की। उनकी प्रतिभा बचपन में ही पहचान ली गई थी।
96 प्रतिशत अंकों से मेडिकल सीट हासिल
पीयूसी की पढ़ाई के दौरान स्नेहा को अल्वा एजुकेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. एम. मोहन अल्वा का सहयोग मिला, जिसके तहत उन्हें निःशुल्क शिक्षा दी गई। उन्होंने पीयूसी में 96 प्रतिशत अंक हासिल किए, जिससे उन्हें मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला।
माता-पिता का संघर्ष और योगदान
डॉ. स्नेहा के पिता गणेश वी. तालुक स्तर की कोरगा कल्याण समिति के अध्यक्ष हैं और वे पिछले करीब 40 वर्षों से समुदाय के शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कुंभाशी में कोरगा बच्चों के लिए एक आवासीय केंद्र स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।
वहीं, उनकी मां जयश्री एक शिक्षिका हैं और समुदाय से जुड़ी सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहती हैं। माता-पिता ने कई व्यक्तिगत त्याग करते हुए बेटी की पढ़ाई को प्राथमिकता दी, जिसका परिणाम आज पूरे समाज के सामने है।
“शिक्षा ही बदलाव की कुंजी है”
ईटीवी भारत से बातचीत में डॉ. स्नेहा ने कहा कि उनकी सफलता से उन्हें बेहद खुशी है, लेकिन इससे ज्यादा संतोष इस बात का है कि वे अपने समुदाय के बच्चों के लिए प्रेरणा बन सकेंगी। उन्होंने कहा कि शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के लिए आवास और भोजन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी बेहद जरूरी हैं।
डॉ. स्नेहा का मानना है कि उन्हें एक स्थिर परिवार, सहयोगी माता-पिता और सही मार्गदर्शन मिला, जिसने उनके डॉक्टर बनने के सपने को साकार किया।
समुदाय के लिए नई उम्मीद
कोरगा समुदाय के लोगों का कहना है कि कभी इस समुदाय से डॉक्टर बनने की कल्पना भी मुश्किल थी। पारंपरिक रूप से जंगल की उपज, टोकरी बनाना और ढोल बजाना जैसे कामों पर निर्भर इस समाज को समय के साथ आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, जिससे बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती थी।
डॉ. के. स्नेहा की सफलता ने इस सोच को बदल दिया है। आज वे न सिर्फ कोरगा समुदाय की पहली महिला डॉक्टर हैं, बल्कि हजारों बच्चों के लिए यह संदेश भी हैं कि कठिन हालात में भी सपनों को साकार किया जा सकता है।

