भारत-अमेरिका के बीच ऐतिहासिक रक्षा समझौता — HAL ने GE Aerospace से 113 जेट-इंजन के लिए $1 बिलियन का करार किया
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और अमेरिकी कंपनी GE Aerospace के बीच तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) कार्यक्रम के लिए 113 F-404/ F-414 श्रेणी के जेट-इंजनों की आपूर्ति पर लगभग $1 बिलियन (करीब ₹8,870 करोड़) का समझौता हुआ है। यह करार भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है और देश की विमानन क्षमता तथा उत्पादन सामर्थ्य बढ़ाने में मददगार रहेगा।
प्रमुख बिंदु — संक्षेप में
- HAL ने GE Aerospace के साथ 113 F-404 / F-414 जेट-इंजनों की आपूर्ति हेतु लगभग $1 बिलियन का करार किया।
- समझौते के जरिये शुरुआती आपूर्ति के बाद भारत में सह-निर्माण (co-production) और प्रौद्योगिकी साझेदारी की संभावना पर पहले बातचीत चल चुकी है।
- F-414/ F-404 परिवार बहु-मिशन, तेज थ्रॉटल-रिस्पॉन्स और आफ्टरबर्नर क्षमता के लिए विश्वसनीय माना जाता है — इन्हें कई देशों के आधुनिक लड़ाकू विमानों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
- यह इंजन भविष्य के भारतीय प्लेटफॉर्म-जैसे Tejas MK-II, AMCA और TEDBF (नौसेना के लिए स्वदेशी डेक-बेस्ड फ़ाइटर) में इस्तेमाल किए जाने की संभावनाओं के कारण खास महत्व रखता है।
- करार का सीधा असर भारत की घरेलू उत्पादन क्षमता, रक्षा आत्मनिर्भरता (Atmanirbhar Bharat) और वायुसेना की परिचालन तत्परता पर पड़ेगा।
करार का तकनीकी और रणनीतिक महत्व
F-414 (F-404 परिवार का उन्नत वर्जन) को 22,000 पाउंड (≈98 kN) थ्रस्ट-क्लास का शक्तिशाली आफ्टर-बर्निंग टर्बोफैन इंजन माना जाता है। इसके प्रमुख फायदे हैं तेज थ्रॉटल-रिस्पॉन्स, शून्य-थ्रॉटल प्रतिबंध, बेहतर थ्रस्ट-टू-वेट अनुपात और वास्तविक-समय पर प्रदर्शन-डेटा देने वाली इलेक्ट्रॉनिक इंजन-मॉनिटरिंग प्रणालियाँ। ये खूबियाँ इसे अगली पीढ़ी के कई लड़ाकू विमानों के लिए वांछनीय बनाती हैं।
विशेष रूप से भारत के संदर्भ में:
- तेजस MK-II और AMCA जैसे उच्च-प्रदर्शन प्लेटफॉर्म के लिए यह इंजन महत्वपूर्ण है।
- भारतीय नौसेना के डेक-बेस्ड मल्टी-रोल फाइटर (TEDBF) के लिये ट्विन-इंजन विन्यास में एफ-414 की उपयुक्तता पर नजर रखी जा रही है।
- घरेलू उत्पादन शुरू होने पर आपूर्ति श्रृंखला मजबूत होगी और ऑपरेशनल स्टॉक व स्क्वाड्रन संख्या बढ़ने में मदद मिलेगी — जो आजादी के छह दशक में IAF के सबसे निचले स्क्वाड्रन-स्तर से निपटने की दिशा में जरूरी माना जाता है।
पृष्ठभूमि — टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और कावेरी परियोजना
भारत पहले भी स्वदेशी जेट-इंजन विकसित करने का प्रयत्न कर चुका है — सबसे प्रमुख प्रयास कावेरी इंजन रहा। कावेरी परियोजना में अत्यधिक तकनीकी चुनौतियाँ आईं, कई प्रोटोटाइप बनाये गए और लंबी-पूरी परीक्षण प्रक्रिया के बाद भी यह तेजस जैसी आवश्यकता-संतोषजनक लड़ाकू विमानों के लिये आवश्यक थ्रस्ट और विश्वसनीयता प्रदान नहीं कर पाया।
इसी कारण भारत ने विदेशी इंजनों पर निर्भरता का संयोजन अपनाया — अब GE के साथ यह करार न केवल तत्काल आपूर्ति सुनिश्चित करेगा बल्कि सह-निर्माण और संभावित क्षमता-निर्माण के जरिये दीर्घकालिक रणनीतिक लाभ भी दे सकता है।
सौदे का समय-रेखा (सारांश)
- 1990-2000s: कावेरी परियोजना और प्रोटोटाइप परीक्षण।
- 2010: F-414 का चयन और वैश्विक उपयोग में वृद्धि।
- हालिया वर्षों: भारत-अमेरिका रक्षा एवं तकनीकी साझेदारी में सुधार; ICET जैसी पहलों से प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ावा मिला।
- वर्तमान: HAL-GE के बीच 113 इंजन की आपूर्ति हेतु ~$1 बिलियन करार।
विशेषज्ञों की दृष्टि (संक्षेप)
- रणनीतिक: करार से भारत की लड़ाकू-उद्योग श्रृंखला मजबूत होगी और भविष्य के प्लेटफार्मों के लिये आवश्यक इंजन-सपोर्ट उपलब्ध कराएगा।
- परिचालन: अधिक शक्तिशाली इंजन तेजस-परिवार के उन्नत संस्करणों व नौसैनिक प्लेटफॉर्म की क्षमता बढ़ा सकते हैं।
- औद्योगिक: सह-निर्माण व संभावित टेक-ट्रांसफर से भारत के इंजिन-मेकिंग कौशल में विकास की संभावना रहेगी, पर यह सख्त एक्सपोर्ट-नियंत्रण और कॉर्पोरेट-समझौतों पर निर्भर करेगा।

