जिम कॉर्बेट की 150वीं जयंती: शिकारी से वन रक्षक बनने की प्रेरक गाथा, जिसने बदली सोच और दिशा– JIM CORBETT BIRTH ANNIVERSARY
आज, 25 जुलाई को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित वन्यजीव संरक्षकों में से एक एडवर्ड जेम्स ‘जिम’ कॉर्बेट की 150वीं जयंती मनाई जा रही है। जिम कॉर्बेट के नाम पर भारत के पहले राष्ट्रीय पार्क का नाम जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क रखा गया, जो आज कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के रूप में विश्वविख्यात है। एक समय आदमखोर बाघों का भय खत्म करने वाले जिम कॉर्बेट, बाद में उन्हीं बाघों के सबसे बड़े रक्षक बन गए। उनका जीवन एक शिकारी से संवेदनशील पर्यावरण रक्षक बनने की प्रेरणादायक यात्रा है।
शिकारी से संरक्षणकर्ता बनने की यात्रा
कॉर्बेट ने उत्तराखंड के कालाढूंगी क्षेत्र में अपना अधिकांश जीवन बिताया। उन्होंने 33 आदमखोर बाघ और 14 तेंदुओं का शिकार किया, लेकिन समय के साथ उन्हें समझ आया कि ये जानवर मजबूरी में आदमखोर बनते हैं—बीमार या घायल होने पर जब वे सामान्य शिकार नहीं कर पाते। यहीं से उनके भीतर बदलाव शुरू हुआ, और एक शिकारी एक भावुक वन्यजीव संरक्षक में बदल गया।

कॉर्बेट पार्क की स्थापना
वन्यजीवों के प्रति गहरी समझ और संवेदना के चलते कॉर्बेट ने उनके संरक्षण की पहल की। उनके प्रयासों के चलते 1936 में भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान अस्तित्व में आया, जिसे बाद में उनके नाम पर कॉर्बेट नेशनल पार्क कहा गया। आज यह पार्क 260 से अधिक बाघों, हजारों हाथियों, तेंदुओं और पक्षियों का सुरक्षित आवास है।
बहुआयामी व्यक्तित्व
जिम कॉर्बेट केवल शिकारी नहीं थे। वे लेखक, फोटोग्राफर, समाजसेवी, कारपेंटर और शिल्पकार भी थे। कालाढूंगी स्थित उनका शीतकालीन आवास आज म्यूज़ियम का रूप ले चुका है, जहां उनके द्वारा बनाए गए फर्नीचर, औजार, फोटो और किताबें प्रदर्शित की गई हैं। यह म्यूज़ियम उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का प्रमाण है।
लेखक के रूप में पहचान
कॉर्बेट ने अपनी जंगल यात्राओं और अनुभवों को ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’, ‘जंगल लॉर’, ‘टेम्पल टाइगर’ जैसी पुस्तकों में जीवंत रूप में प्रस्तुत किया, जो आज भी दुनिया भर के प्रकृति प्रेमियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

विरासत और म्यूज़ियम
भारत की आजादी के बाद कॉर्बेट केन्या चले गए, लेकिन अपनी विरासत के रूप में कालाढूंगी का आवास मित्र चिरंजी लाल साह को सौंप गए। 1965 में यह घर वन विभाग को सौंपा गया और तब से यह जिम कॉर्बेट म्यूज़ियम के रूप में संरक्षित है।
150वीं जयंती पर आयोजन
उनकी 150वीं जयंती पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और स्थानीय प्रशासन द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए, जैसे स्मृति व्याख्यान, वृक्षारोपण अभियान, फोटो प्रदर्शनी, वन्यजीव फिल्में और बच्चों के लिए शैक्षिक गतिविधियाँ। यह आयोजन केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति के प्रति जागरूक करने की कोशिश है।

जिम कॉर्बेट सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के बीच संतुलन की एक जीवंत मिसाल हैं। उनका जीवन बताता है कि बदलाव संभव है – बस ज़रूरत है संवेदनशीलता और समर्पण की।