उत्तराखंड राज्य आंदोलन की दुर्लभ तस्वीरें प्रदर्शित, इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने सुनाई संघर्ष की आंखों देखी कहानी
मसूरी: उत्तराखंड राज्य के गठन को अब 25 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। इस अवसर पर मसूरी के प्रख्यात इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने राज्य निर्माण आंदोलन के संघर्षपूर्ण दौर और सुनहरे पलों को याद किया।
उन्होंने कहा कि अलग उत्तराखंड की लड़ाई की शुरुआत आज से 70 साल पहले, वर्ष 1955 में ही हो गई थी।
इस मौके पर भारद्वाज ने आंदोलन के दौरान खींची गई दुर्लभ तस्वीरों और राज्य गठन के बाद मसूरी में हुए जश्न की झलकियां प्रदर्शित कीं, जिन्हें देखकर वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम हो गईं।
🕰️ 1955 में उठी थी अलग राज्य की मांग
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि उत्तराखंड राज्य की नींव 1955 में मसूरी नगर पालिका परिषद से रखी गई थी।
उसी वर्ष पहली बार उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों को अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ था।
उन्होंने कहा कि उस समय पहाड़ी जिलों में विकास का बजट बेहद सीमित था, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़कों जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही थीं।
1955 से 1994 तक यह आंदोलन धीरे-धीरे मजबूत होता गया, और पहाड़ की आवाज पूरे उत्तर प्रदेश में गूंजने लगी।
🔥 1994 का मसूरी गोलीकांड बना आंदोलन का टर्निंग पॉइंट
इतिहासकार भारद्वाज ने बताया कि अगस्त 1994 में एम.जी. कॉलेज के छात्र आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहे थे, तभी अलग उत्तराखंड राज्य की मांग भी तेज हो गई।
उन्होंने कहा कि उस दौर में मसूरी में हर दिन धरने और प्रदर्शन होते थे।
लेकिन 2 सितंबर 1994 का दिन इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय बन गया —
जब तत्कालीन पुलिस ने शहीद भवन में धरने पर बैठे आंदोलनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया।
इसमें 6 आंदोलनकारी शहीद हुए और एक सीओ की भी मौत हो गई।
भारद्वाज ने उस समय की तस्वीरें दिखाईं, जिनमें आंदोलनकारियों के चेहरों पर जज्बा और आंखों में अलग राज्य का सपना साफ झलकता है।
🎉 9 नवंबर 2000: मसूरी में गूंजे “जय उत्तराखंड” के नारे
भारद्वाज ने बताया कि 9 नवंबर 2000 का दिन मसूरी की गलियों में अविस्मरणीय उत्सव लेकर आया।
जब उत्तराखंड राज्य का औपचारिक गठन हुआ, तो ढोल-नगाड़ों की थाप और “जय उत्तराखंड” के नारों से पूरा शहर गूंज उठा।
उन्होंने उस दिन की तस्वीरें भी प्रदर्शित कीं, जिनमें जनता के चेहरों पर सपनों के सच होने की चमक दिख रही थी।
🌄 शहीदों के सपनों का उत्तराखंड अब भी अधूरा
इतिहासकार भारद्वाज ने कहा कि भले ही 25 वर्षों में उत्तराखंड ने विकास के कदम बढ़ाए हैं, लेकिन
शहीदों और आंदोलनकारियों की कल्पना का उत्तराखंड अभी पूरा नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा —
“हमने राज्य इसलिए मांगा था ताकि पहाड़ों में रोजगार आए, पलायन रुके और पर्यावरण सुरक्षित रहे,
लेकिन आज भी पहाड़ खाली हो रहे हैं।”
⚖️ सरकार से संतुलित विकास की अपील
गोपाल भारद्वाज ने कहा कि सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर और सड़कों के क्षेत्र में अच्छा कार्य किया है,
परंतु अब जरूरत है संतुलित विकास की —
जहां पहाड़ का पर्यावरण, संस्कृति और रोजगार तीनों को समान प्राथमिकता दी जाए।
उनके शब्दों में —
“उत्तराखंड का असली विकास तभी होगा जब पहाड़ का युवा, उसकी जमीन और उसका जंगल — तीनों पहाड़ पर ही रहेंगे।”
🖼️ तस्वीरों में झलका इतिहास और जश्न
इस मौके पर भारद्वाज ने 1955 से 2000 तक के आंदोलन की दुर्लभ तस्वीरें और
राज्य गठन के बाद मसूरी में हुए उत्सव की झांकियां प्रदर्शित कीं।
कई वरिष्ठ नागरिक इन तस्वीरों को देखकर भावुक हो उठे और आंदोलन के दिनों की यादें ताजा हो गईं।

