टिहरी में डिलीवरी के बाद महिला की मौत: स्वास्थ्य सुविधाओं की लापरवाही का एक और मामला
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालत का एक और दर्दनाक मामला सामने आया है। टिहरी जिले के घनसाली की 28 वर्षीय अनीशा रावत की डिलीवरी के बाद इलाज के अभाव में मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही ने एक नवजात को मां से जुदा कर दिया, जिससे परिवार में मातम पसर गया।
जानकारी के मुताबिक, तितराना नैलचामी, घनसाली निवासी अनीशा रावत ने 6 सितंबर को पिलखी अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया। डिलीवरी के बाद उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। परिजनों का कहना है कि अस्पताल में मौजूद डॉक्टरों ने उचित इलाज देने के बजाय उन्हें अन्य जगह रेफर कर दिया।
डॉक्टरों की सलाह पर अनीशा को पहले घर ले जाया गया, फिर श्रीनगर श्रीकोट अस्पताल पहुंचाया गया। वहां से उनकी गंभीर हालत को देखते हुए उन्हें ऋषिकेश के निर्मल अस्पताल रेफर किया गया, लेकिन वहां भी इलाज में कमी रही। अंततः 8 सितंबर को उन्हें देहरादून के इंद्रेश अस्पताल के ICU में भर्ती कराया गया। कुछ समय के लिए उनकी हालत में सुधार हुआ, लेकिन रविवार रात अचानक बिगड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
परिजनों ने बताया कि डिलीवरी के दौरान अनीशा का ब्लड प्रेशर बढ़ गया था, लेकिन पिलखी अस्पताल के डॉक्टरों ने लापरवाही बरती। समय पर इलाज न मिलने से उनके किडनी और अन्य अंगों ने काम करना बंद कर दिया। इस घटना से घनसाली क्षेत्र में शोक के साथ गुस्सा भी है। ग्रामीणों का कहना है कि यह पहला मामला नहीं है, पहले भी स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता से कई जिंदगियां गई हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो आंदोलन होगा।
भूतपूर्व विधायक भीम लाल आर्य ने जिला प्रशासन को पत्र लिखकर स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि घनसाली और आसपास के इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से लोगों की जान खतरे में है, और तत्काल सुधार न हुआ तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।
यह घटना उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गहरी चिंता जताती है। सवाल उठ रहे हैं:
- प्रसव जैसी गंभीर स्थिति में महिला को बार-बार अस्पतालों के चक्कर क्यों लगाने पड़े?
- समय पर सही इलाज क्यों नहीं मिला?
- क्या उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था हमेशा रेफरल सिस्टम पर ही निर्भर रहेगी?
एक नवजात ने जन्म के साथ ही मां का साथ खो दिया, और परिवार शोक में डूबा है। यह सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही का समाज के लिए खतरे की घंटी है।