बाघ गणना 2025: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में तीन चरणों में होगा टाइगर सेंसस, जानिए कैसे होती है बाघों की पहचान
देशभर में हर चार वर्ष में होने वाली राष्ट्रीय बाघ गणना (टाइगर सेंसस) की प्रक्रिया 14 दिसंबर से औपचारिक रूप से शुरू हो गई है। इस महत्वपूर्ण अभियान के तहत देश के सभी प्रमुख टाइगर रिजर्व और वन क्षेत्रों में बाघों की संख्या, उनका वितरण क्षेत्र और मूवमेंट पैटर्न का वैज्ञानिक आकलन किया जा रहा है।
इस बार की बाघ गणना में आधुनिक तकनीकों और वैज्ञानिक तरीकों को प्राथमिकता दी गई है। टाइगर सेंसस से पहले टूरिज्म वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) द्वारा वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। प्रशिक्षण के दौरान डेटा कलेक्शन, विश्लेषण और गणना के वैज्ञानिक पहलुओं को विस्तार से समझाया गया, ताकि पूरी प्रक्रिया सटीक और भरोसेमंद हो सके।
कैमरा ट्रैप से होगी बाघों की पहचान
इस बार की गणना में कैमरा ट्रैप तकनीक को प्रमुख आधार बनाया गया है। कैमरा ट्रैप से ली गई तस्वीरों के जरिए बाघों की पहचान उनकी धारियों (Stripes) के पैटर्न के आधार पर की जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, हर बाघ की धारियां इंसान के फिंगरप्रिंट की तरह पूरी तरह अलग होती हैं, जिससे प्रत्येक बाघ की अलग-अलग पहचान संभव होती है।
इस तकनीक से न केवल बाघों की वास्तविक संख्या सामने आती है, बल्कि उनके आवास क्षेत्र, गतिविधियों और मूवमेंट से जुड़ा महत्वपूर्ण डेटा भी एकत्र होता है।
संरक्षण नीतियों के लिए अहम है बाघ गणना
राष्ट्रीय बाघ गणना केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भविष्य की वन्यजीव संरक्षण नीतियों और प्रबंधन रणनीतियों को तय करने में अहम भूमिका निभाती है। बाघों की संख्या में बढ़ोतरी या कमी के आधार पर सरकार और वन विभाग संरक्षण योजनाओं को और मजबूत करता है।
कॉर्बेट में तीन चरणों में होगा सर्वे
विश्व प्रसिद्ध कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी बाघ गणना की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। कॉर्बेट को दुनिया के प्रमुख टाइगर हैबिटैट्स में गिना जाता है। यहां 260 से अधिक बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई है, जबकि पूरे उत्तराखंड राज्य में बाघों की संख्या करीब 560 बताई जाती है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर राहुल मिश्रा ने बताया कि रिजर्व में बाघ गणना तीन चरणों में पूरी की जाएगी। इसके लिए पूरे क्षेत्र में 550 से अधिक कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं, ताकि हर इलाके को कवर किया जा सके और सटीक आंकड़े सामने आ सकें। उन्होंने कहा कि यह सर्वे बाघ संरक्षण की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण है और इसके आधार पर आने वाले वर्षों की रणनीति तय की जाएगी।

