Schedule 6 की मांग करता लद्दाख और उत्तराखंड से कनेक्शन
लद्दाख में HUNGER STRIKE चल रहा है और इस HUNGER STRIKE का सबसे बड़ा कारण है. जमीन और पहाड़…. और इसी पहाड़ और जमीन से ही जुड़ा है संस्कृति और पर्यावरण को बचाने का मुद्दा. घुमा फिरा के लद्दाख की जो लड़ाई है वही उत्तराखंड़ की लड़ाई है वही हिमांचल की लड़ाई है और वही कई पर्वतीय राज्यों की लड़ाई है. सभी को अपनी जमीनें बचानी हैं. अगर ऐसा नहीं होगा तो वहां की संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी, वहां का पर्यावरण भी खतरे में पड़ जाएगा. लद्दाख में Sonam Wangchuk पिछले कई दिनों से भूख हड़ताल पर इसलिए बैठे हैं ताकी वो लद्दाख को Schedule 6 का दर्जा दिला सके.
अब ये सिड्यूल 6 क्या है ?
दरअसल 6th Schedule के तहत Trible areas को उनके अपने कानून बनने का अधिकार मिल जाता है. 6th Schedule फिलहाल North East के Assam, Meghalaya, Tripura और Mizoram के Tribe Areas में लगा है. और भारतीय संविधान के तहत Schedule 6 केवल North East के राज्यों में ही लग सकता है. लेकिन सरकार इसमें संसोधन कर के इसमें लद्दाख जैसे राज्य को भी जोड़ सकती है.
अब Schedule 6 का मतलब ये नहीं होता की Trible Areas भारत के कानूनों को नहीं मानेगा बल्की उन्हें ये हक दिया गया है की वो अपने जनजातीय क्षेत्र का Culture और Environment को बचाने के लिए अलग से कानून बना सकें लेकिन वो भी Governor की मंजूरी के बिना लागू नहीं हो सकता.
Schedule 6 से Ladakh को क्या फायदा होगा ?
देखिए अगर Schedule 6 लागू होता है तो लद्दाक के लोग अपने पर्यावरण और संस्कृति को बचाने के लिए कानून बना सकेंगे.. बाहर से जा रही कंपनियां जो वहां जमीन खरीद कर टूरिज्म और अन्य धंधों में भी कब्जा कर रही है वो नहीं हो पाएगा . जिससे लोकल लोगों से उनकी आजीविका नहीं छिनेगी. इसके साथ-साथ खनन और अन्य तरीकों से जो लद्दाख के क्लाइमेट को नुकसान पहुंच सकता है वो नहीं पहुंचेगा. इसके साथ-साथ लद्दाख के लोग राज्य का दर्जा भी मांग रहे हैं ताकी उन्हें अपने विधायक चुनने का हक मिल सके. अभी लद्दाख एक केंद्र शासित प्रदेश है जो Governor के अंडर काम करता है. यहां तक की लद्दाख के पास केवल एकी ही लोकसभा सांसद है जिसे भी वो 2 करने की मांग कर रहे हैं एक लेह के लिए और एख कारगिल के लिए.. इसी लिए Sonam Wangchuk जो की एक Engineer और education reformer है वो कई दिनों से भूख हड़ताल कर रहे हैं. लेकिन अभी तक यकीन मानिए अभी तक ना तो इस देश के बड़े-बड़े चैनल और ना ही बड़े-बड़े नेताओं ने उन्हें Seriously लिया है.
अब एक सवाल यहां से निकल कर आता है की Schedule 6 अगर लद्दाख में नहीं लगा तो क्या नुकसान हो सकता है… और इस सवाल का जवाब हमें लेकर आता है सीधा हिमांचल और उत्तराखंड. हिमांचल में तो फिर भी Schedule 5 लागू है लेकिन उत्तराखंड में तो वो भी लागू नहीं है. अब आप सोचेंगे ये Schedule 5 क्या है.
Schedule 5 को आप Schedule 6 का छोटा भाई समझ लीजिए… मतलब Schedule 5 में Schedule 6 के मुकाबले बहुत कम अधिकार दिए गए हैं. Schedule 6 में 30 मेंमबर्स की एक इलेक्टेड Autonomous District Council होती हैं तो Schedule 5 में 20 मेंम्बर्स की एक Advisory Council होती है. भारत में 10 राज्यों के Trible क्षेत्रों में Schedule 5 लगा हुआ है.
अब आगे बढ़ते हैं और सवाल पर वापस आते हैं की Schedule 6 अगर लद्दाख में नहीं लगा तो क्या नुकसान हो सकता है.
देखिए पहाड़ी राज्यों की अपनी Climatic Conditions होती हैं. और इसे अगर नजर अंदाज किया जाए तो हमें भयंकर मंजर दिख सकते हैं… और सिर्फ यही नहीं पहाड़ी राज्यों में शहरों जैसा बाजारीकरण अगर हो जाए तो वहां के पर्यावरण को तो नुकसान होगा की बल्की वहां की संस्कृति, भाषा और Way of Living भी प्रभावित होगी.
उत्तराखंड में इन दिनों मूल निवास और भू-कानून की मांग उठ रही है. मांग ये भी की जा रही है उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में भी Schedule 5 को लागू किया जा सके. और ये सब मांगे इसीलिए की जा रही है क्योंकि उत्तराखंड का कल्चर विलुप्त हो रहा है, पर्यावरण खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है, स्थानीय लोगों की जमीनें बाहरी लोग खरीद रहे हैं या उद्योगपतियों को ये जमीनें दी जा रही हैं, या विकास के नाम पर यहां अंधाधुंध पहाड़ और पेड़ों का कटान हो रहा है.और अंत में लोग पहाड़ छोड़ कर शहरों में बस रहे हैं. जोशीमठ इसका सबसे पड़ा Example है की कैसे वहां पर्यवरण को ताक पर रख कर विकास कार्य किया गया और फिर लोग अपने घर तो छोड़ने को मजबूर हुए ही बल्की जोशीमठ पर भी भविष्य में बड़ा खतरा मंडरा रहा है. इसी तरह चार धाम की ऑल वेदर रोड़ ने भी पर्यावरण को भयंकर नुसान पहुंचाया है. बांधों से पूरा उत्तराखंड भर चुका है. टिहरी बांध आज भले ही देश की बिजली की आपूर्ती को पूरा कर रहा है लेकिन उत्तराखंड को इसने नुकसान ही पहुंचाया है.
उत्तराखंड में पर्यावरण की स्थिति ये है की यहां कभी भी कोई बड़ा भूकंप आ सकता है. मतलब ये बारूद के ढेर पर खड़ा है. उत्तराखंड के लोगों की जमीनें उनसे छिन रही है, पलायन हो रहा है, यहां की भाषा और संस्कृति विलुप्त हो रही है और ये सब हो रहा है क्योंकि यहां की पहाड़ो को और जमीनों को बचाया नहीं गया. और यही बचाने की लड़ाई आज लड़ी जा रही है लद्दाख में.
अब सवाल ये आता है की सरकार लद्दाख के लोगों की मांगों को क्यों पूरा नहीं कर रही है.
देखिए कोई एक कारण नहीं है लद्दाख के लोगों की मांगो को पूरा ना करने का. बहुत सारे कारण हैं. पहला ये की अगर लद्दाख में Schedule 6 लगा तो वहां विकास के कामों के लिए जमीनें नहीं मिल पाएगी, वहां की लाइफ स्टाइल का बाजारीकरण नहीं किया जा सकेगा और बड़े-बड़े उद्योगपति लद्दाख में अपना धंधा शुरु नहीं कर पाएंगे. विकास उसी तरह जैसे मैने आपको उत्तराखंड के बारे में बताया. उत्तराखंड में बड़े-बड़े बांध बना दिए गए हैं, यहां पहाड़ों को काटकर चौड़ी-चौड़ी सड़कें बना दी गई हैं, पहाड़ों को खोखला कर के लंबी-लंबी सुरंगे बना दी गई हैं. ये सारे विकास के काम आपको जरूरी लग सकते हैं लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से ये बहुत खतरनाक भी हैं. इसीलिए उत्तराखंड़ आज बारूद के ढेर पर खड़ा माना जाता है. और लद्दाख के लोग ये नहीं चाहते.
सरकार ने लोगों से कई सारे वादे किए लेकिन पूरे नहीं किए. यहां तक की बीजेपी सरकार ने चुनाव से पहले लद्दाख में Schedule 6 लगाने का वादा अपने मैनिफेस्टो में किया था. लेकिन अब वो वादा पूरा नहीं किया जा रहा. इससे आप समझ ही सकते हैं किस तरह चुनावों से पहले झूठे वादे कर के राजनेता सत्ता में आते हैं.
05 April, 2023 को Ministry of Home Affairs ने राज्यसभा में बताया की किसी भी Indian company or MNC ने लद्दाख में कोई इंवेस्टमेंट नहीं की है और किसी भी बाहरी व्यक्ति ने लद्दाख में जमीन नहीं ली है. इस खबर के कुछ ही महीनों बाद 19 October , 2023 को खबर आती है जिसमें सरकार ने लद्दाख में 20 हजार 700 करोड़ के सोलर पावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है.
अब आपको ये वक्त की जरूरत लग रहा होगा जैसे उत्तराखंड के बांध आपको लग रहे होंगे. लेकिन इसका दुष प्रभाव यहां के Trible लोगों पर पड़ रहा है. Sonam Wangchuk ने बताया की वो Trible जो अपनी भेड़-बकरियां चराते हैं और पश्मीना बनाने के लिए मश्हूर हैं. इससे उनके पशुओं के लिए चरने के लिए जमीन खत्म हो रही है. यहां तक की चाइना की तरफ से भी जमीन हड़प ली गी है. जिस वजह से इन लोगों को जानवर बैचने पड़ेंगे और मजदूरी करनी पड़ेगी.
अब आप ही सोचिए अगर ये लोग अपने जानवरों को बेच देंगे तो ये ना सिर्फ जोबलेस हो जाएंगे बल्की लद्दाख से पश्मीना बनाने का कल्चर भी खत्म हो जाएगा. ऐसे ही कई तरह के डर लद्दाख के लोगों को हैं. जिससे भविष्य में ना सिर्फ क्लाइमेट बल्की, कल्चर और लोग भी खत्म हो जाएंगे. कुछ इसी तरह की स्थिति जो आज उत्तराखंड की बनी हुई है. विकास अच्छा है लेकिन अगर लोग ही नहीं रहेंगे तो उस विकस का भी क्या करना. कोई भी देश, कोई भी राज्य बड़ी-बड़ी बिल्डिगों और उद्योगों से रहने लायक नहीं बनता बल्की वहां का कल्चर, जमीन और पहाड़ उसे रहने लायक बनाता है. जहां जहां का कल्चर और पर्यावरण बचा कर और संजो कर रखा गया है आज वहां की खूबसूरती में ही लोग रहना चाहते हैं .
विकास की इस रेस में उत्तराखंड़ तबाह हो गया है. जरूरत है की हम ना सिर्फ लद्दाख के साथ आज खड़े रहें बल्की उत्तराखंड, हिमांचल और कश्मीर जैसे पहाडी राज्यों का भी साथ दें. क्योंकि आप रह चाहे कहीं भी रह रहे हों. सुकून के लिए पहाड़ों में ही आना पड़ता है.