नवरात्रि के दूसरे दिन करें हरिद्वार की मां चंडी देवी के दर्शन
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी साधना और तपस्या की प्रेरणा देने वाली देवी मानी जाती हैं। इस शुभ अवसर पर हरिद्वार स्थित मां चंडी देवी के दर्शन करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
हरिद्वार: देवभूमि का शक्ति स्थल
हरिद्वार को ‘हरि का द्वार’ कहा जाता है। यह देवभूमि दो विशाल पर्वतों पर स्थित दो प्रमुख सिद्ध मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है—मनसा देवी मंदिर और चंडी देवी मंदिर। नील पर्वत पर स्थित मां चंडी देवी का मंदिर, असुरों के संहार और देवताओं की रक्षा के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
मां चंडी देवी की महिमा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब असुरों का अत्याचार बढ़ा, तो देवताओं ने मां भगवती की आराधना की। मां चंडी देवी खंभे को चीरकर प्रकट हुईं और असुरों का संहार किया। इस स्थान को शक्ति पीठ भी माना जाता है। यहां देवी के दो रूप पूजे जाते हैं—रुद्र चंडी और मंगल चंडी।
मनोकामना पूर्ण करने वाला मंदिर
मां चंडी देवी के मंदिर में श्रद्धालु विशेष रूप से अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी के दिन पूजा-अर्चना करते हैं। यहां भक्त माता के चरणों में चुनरी बांधकर अपनी मनोकामना की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। जैसे ही इच्छा पूर्ण होती है, वे माता को धन्यवाद स्वरूप चुनरी अर्पित करते हैं।
कैसे पहुंचे चंडी देवी मंदिर?
मां चंडी देवी का मंदिर हरिद्वार के नील पर्वत पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए भक्त 4 किलोमीटर की चढ़ाई कर सकते हैं या रोपवे (उड़नखटोला) का उपयोग कर सकते हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जो मां के दिव्य दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त करती है।
नवरात्रि के इस पावन अवसर पर मां चंडी देवी के दर्शन कर अपने जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की कामना करें।