हिमालयी राज्यों की चुनौतियों का हल बनेगी स्पेस टेक्नोलॉजी, उत्तराखंड में बनेगा रोडमैप
उत्तराखंड समेत समूचे हिमालयी राज्यों के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (Space Technology) अब एक अहम समाधान के रूप में सामने आ रही है। हिमालयी क्षेत्र की भौगोलिक जटिलताएं, जलवायु से जुड़ी चुनौतियां, आपदाओं की आशंका और सीमित संसाधनों के बीच स्पेस टेक्नोलॉजी से न केवल आपदा प्रबंधन बल्कि नियोजित विकास को भी नई दिशा मिल सकती है।
इसी उद्देश्य को लेकर उत्तराखंड में पहली बार इसरो (ISRO) के अध्यक्ष वी. नारायणन और वैज्ञानिकों की टीम 30 जून को मुख्यमंत्री कार्यालय में एक महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा लेने जा रही है। इस बैठक में उत्तराखंड सरकार और इसरो के बीच स्पेस टेक्नोलॉजी के बेहतर उपयोग को लेकर एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया जाएगा।
🌍 हिमालयी राज्यों की चुनौतियों में मिलेगी तकनीकी राह
हिमालयी राज्यों को हर वर्ष भूस्खलन, ग्लेशियरों के फटने (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट), वनाग्नि, और संचार अवरोधों जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन हालातों में उन्नत सैटेलाइट तकनीक के जरिए:
- ग्लेशियरों की निगरानी
- भूस्खलन की पूर्व चेतावनी
- वनाग्नि पर रियल-टाइम अलर्ट
- टेली-मेडिसिन और कनेक्टिविटी में सुधार
जैसी अनेक गतिविधियों को सुरक्षित और प्रभावी ढंग से अंजाम दिया जा सकता है।
🛰️ स्पेस टेक्नोलॉजी के संभावित उपयोग
- आपदा प्रबंधन में मदद: सटीक सैटेलाइट डेटा से प्रभावित क्षेत्रों की त्वरित पहचान और राहत कार्य में तेजी।
- ग्लेशियरों की निगरानी: हिमखंडों और झीलों की समय-समय पर निगरानी से जलप्रलय जैसी आपदाओं को रोका जा सकता है।
- शहरी नियोजन: सैटेलाइट से अवैध निर्माण की पहचान और नियोजित शहरों की स्थापना में सहयोग।
- वन विभाग को लाभ: फॉरेस्ट फायर, अवैध कटान और अतिक्रमण जैसी घटनाओं पर नजर।
- सैटेलाइट कनेक्टिविटी: दुर्गम इलाकों में संचार व्यवस्था मजबूत होगी, जिससे टेली मेडिसिन, शिक्षा और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा मिलेगा।
🧭 अहम बैठकें और रणनीति
- 30 जून: देहरादून में मुख्यमंत्री कार्यालय में इसरो अध्यक्ष की मौजूदगी में उच्चस्तरीय बैठक।
- 22-23 अगस्त: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में प्रस्तावित राष्ट्रीय स्पेस मीट, जिसमें देहरादून की बैठक में उठाए गए बिंदुओं पर भी चर्चा होगी।
इस पूरी योजना की रूपरेखा यूसेक (U-SEC) द्वारा तैयार की जा रही है, जो उत्तराखंड की स्पेस टेक्नोलॉजी से जुड़ी नोडल एजेंसी है।
📢 क्या बोले अधिकारी?
यूसेक निदेशक दुर्गेश पंत के अनुसार, “यह पहल केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र के लिए दूरदर्शी और परिवर्तनकारी साबित होगी। इससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से योजना बनाकर कार्यों की गति भी तेज होगी।”
एमडीडीए उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी ने भी कहा कि, “इसरो की सहायता से हम अवैध निर्माण की निगरानी, शहरी मास्टर प्लानिंग और डिजिटल ट्रैकिंग को बेहतर बना सकते हैं।”