धराली आपदा की असल वजह आई सामने, वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ने खोला सच — बादल नहीं, मलबे की कमजोरी से मचा था विनाश
साल 2025 उत्तराखंड के लिए प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से बेहद भयावह साबित हुआ. अगस्त और सितंबर के मानसून महीनों में राज्य के कई हिस्से तबाही का शिकार बने, लेकिन सबसे ज्यादा विनाशकारी आपदा उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में 5 अगस्त को देखने को मिली. इस हादसे में 2 लोगों की मौत हुई, जबकि 67 लोग लापता हुए, जिन्हें बाद में मृत घोषित कर दिया गया. हालांकि, अब तक उनके मृत्यु प्रमाण पत्र जारी नहीं किए गए हैं.
शुरुआत में धराली आपदा को लेकर कई तरह के अनुमान लगाए गए — किसी ने इसे क्लाउड बर्स्ट बताया, तो किसी ने झील फटने की आशंका जताई. लेकिन, अब वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) की विस्तृत वैज्ञानिक रिपोर्ट ने इस आपदा की वास्तविक वजह का खुलासा कर दिया है.
🔬 वाडिया इंस्टीट्यूट ने क्या पाया?
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार और उनकी टीम ने धराली आपदा की जमीनी हकीकत का अध्ययन किया. उनकी रिपोर्ट हाल ही में Natural Hazard Research Journal में “The Dharali Catastrophic Disaster: A Wake-Up Call from the Kheer Ganga” शीर्षक से प्रकाशित हुई है.
रिपोर्ट में यह साफ किया गया है कि धराली आपदा न तो क्लाउड बर्स्ट का नतीजा थी और न ही किसी झील के फटने का. असल वजह थी —
“लगातार हो रही भारी बारिश से धराली के ऊपर स्थित ग्लेशियर के पीछे का मोरेन (मलबा) कमजोर हो जाना।”
☔ लगातार बारिश ने किया मलबा कमजोर
आपदा से पहले धराली क्षेत्र में लगातार 15 से 20 दिनों तक बारिश होती रही थी. बारिश का पानी मोरेन यानी मलबे को इतना कमजोर कर गया कि वह खीर गंगा की ओर बह निकला और पूरे धराली बाजार को मलबे में दफन कर दिया.
⚡ 26 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से आया मलबा
अध्ययन में पाया गया कि मलबा 4600 मीटर की ऊंचाई से नीचे आते वक्त और अधिक मलबे को साथ ले आया. यह प्रवाह धराली पहुंचते-पहुंचते 26 मीटर प्रति सेकंड (लगभग 94 किमी/घंटा) की रफ्तार तक पहुंच गया.
🧱 2.51 लाख टन मलबे के नीचे दफन हुआ गांव
इस तबाही में करीब 2,51,000 टन मलबा धराली बाजार के ऊपर गिरा, जिससे कुछ हिस्से 12 से 18 मीटर तक गहराई में दब गए. वैज्ञानिकों ने बताया कि यह मलबा करीब 2570 मीटर ऊंचाई पर जमा था, और नीचे आते वक्त इसका दबाव 190 किलोपास्कल (kPa) तक पहुंच गया — जो बेहद खतरनाक माना जाता है.
☁️ धराली में नहीं फटा था कोई बादल
रिपोर्ट के अनुसार, आपदा वाले दिन यानी 5 अगस्त 2025 को धराली क्षेत्र में सिर्फ 10.9 मिमी बारिश दर्ज की गई थी. 1 अगस्त से 5 अगस्त तक कुल बारिश 37 मिमी हुई थी. इससे यह स्पष्ट हो गया कि धराली में क्लाउड बर्स्ट नहीं हुआ था.
🧭 मानवीय गतिविधियों ने बढ़ाया खतरा
वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र में भूगर्भीय बदलावों के साथ-साथ मानवजनित गतिविधियां, नदी तटों पर अतिक्रमण और अव्यवस्थित भूमि उपयोग भी ऐसी आपदाओं को और घातक बना रहे हैं.
⚠️ भविष्य के लिए चेतावनी
वाडिया इंस्टीट्यूट ने सुझाव दिया है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए —
- संवेदनशील इलाकों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जाए,
- लैंड यूज नीतियों को सख्ती से लागू किया जाए,
- और समुदाय आधारित रणनीतियां तैयार की जाएं ताकि लोगों को समय पर सतर्क किया जा सके.
धराली आपदा ने यह साबित कर दिया है कि पहाड़ों की असली चुनौती सिर्फ प्रकृति नहीं, बल्कि इंसान की लापरवाही भी है. यह रिपोर्ट सरकार और समाज दोनों के लिए एक सख्त चेतावनी है — ताकि अगली धराली जैसी त्रासदी को रोका जा सके।

