उत्तराखंड के बुग्यालों पर मंडरा रहा खतरा! ट्रेकर्स की बढ़ती गतिविधियों से बिगड़ रहा पर्यावरण संतुलन
देहरादून।
उत्तराखंड के ऊंचे हिमालयी इलाकों में फैले मखमली घास से ढके बुग्याल, जो कभी अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के लिए जाने जाते थे, अब खतरे की जद में हैं। बढ़ती ट्रेकिंग गतिविधियां, पर्यटकों की भीड़ और बदलते जलवायु चक्र ने इन बुग्यालों की पारिस्थितिकी को गहरा नुकसान पहुंचाया है।
वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि अगर हालात पर जल्द नियंत्रण नहीं पाया गया, तो हिमालयी क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी और औषधीय वनस्पतियां हमेशा के लिए नष्ट हो सकती हैं।
प्लास्टिक कचरे से बिगड़ रही स्थिति
तुंगनाथ धाम और चंद्रशिला ट्रेकिंग रूट पर भारी संख्या में पहुंच रहे पर्यटक और ट्रेकर्स रास्ते में प्लास्टिक कचरा फेंक रहे हैं, जिससे बुग्यालों को गहरा नुकसान पहुंच रहा है।
यह कचरा न केवल घास और मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यहां पाए जाने वाले दुर्लभ जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह लापरवाही आने वाले वर्षों में हिमालयी क्षेत्रों की पारिस्थितिकी के लिए गंभीर संकट बन सकती है।
अनियंत्रित ट्रेकिंग नीति पर वैज्ञानिकों की चिंता
गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. आर.के. मैखुरी का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में ट्रेकिंग को लेकर कोई सुसंगठित नीति लागू नहीं की गई है।
उन्होंने बताया कि “नेपाल जैसे देशों में ट्रेकर्स के लिए सख्त नियम हैं — सीमित प्रवेश, निगरानी व्यवस्था और पर्यावरणीय नियमों का पालन अनिवार्य है। जबकि उत्तराखंड में अनियंत्रित ट्रेकिंग बुग्यालों के संतुलन को बिगाड़ रही है।”
कमजोर पड़ा निगरानी तंत्र
प्रो. मैखुरी के अनुसार, पहले इन क्षेत्रों में स्थानीय चरवाहे निगरानी का काम करते थे, जिससे अवैध दोहन और कचरे पर नियंत्रण रहता था।
लेकिन पिछले तीन दशकों में चरवाहों की संख्या 50 प्रतिशत तक घट गई है। इससे निगरानी तंत्र कमजोर पड़ा है और नीति, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग जैसे क्षेत्रों में मिट्टी का कटाव और पारिस्थितिक असंतुलन तेजी से बढ़ा है।
तुंगनाथ के बुग्याल सबसे अधिक प्रभावित
रुद्रप्रयाग जिले के चोपता–तुंगनाथ–चंद्रशिला ट्रेक रूट पर बुग्यालों की हालत सबसे अधिक चिंताजनक है। हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु और ट्रेकर्स यहां पहुंचते हैं।
हालांकि वन विभाग ने निगरानी और तारबाड़ की व्यवस्था की है, लेकिन पर्यटक शॉर्टकट रास्तों का इस्तेमाल करते हुए घास और मिट्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
जहां पहले मखमली हरियाली थी, अब वहां कचरे के ढेर और मिट्टी के रास्ते दिखने लगे हैं, जिससे न केवल प्राकृतिक सौंदर्य बिगड़ रहा है बल्कि क्षेत्र की जैव विविधता भी खतरे में है।
“हिमालय को बचाना समय की मांग” — पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली
प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली ने कहा,
“हिमालय का अस्तित्व खतरे में है। बढ़ती मानवीय गतिविधियों के कारण बारिश और बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। पहले लोग सिर्फ तुंगनाथ तक जाते थे, अब वे चंद्रशिला तक ट्रेक कर रहे हैं और रास्ते में कचरा छोड़ जा रहे हैं। यह भविष्य के लिए बेहद चिंताजनक संकेत है।”
क्या हैं बुग्याल और क्यों हैं ये महत्वपूर्ण
बुग्याल उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की घास से ढकी प्राकृतिक चरागाह भूमि हैं।
जहां पेड़-पौधों की सीमा (Tree Line) समाप्त होती है, वहां से बुग्याल शुरू होते हैं। यहां मखमली घास, औषधीय पौधे और दुर्लभ वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं।
इनका संरक्षण न सिर्फ पर्यावरण के लिए, बल्कि प्रदेश के पर्यटन और जलवायु संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है।

