ओड़ीशा और देश के बड़े रेल हादसे
देश में इतिहास के सबसे बड़े रेल हादसों में से एक हादसा हुआ है. ओडीशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे में करीब 280 लोगों की जानें गई हैं और 900 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं.
ये देश का चौथा सबसे बड़ा हादसा है…. भारत का सबसे भीषण रेल हादसा जून 1981 में बिहार में हुआ था… तब एक पैसेंजर ट्रेन के कुछ डिब्बे बागमती नदी में समा गए थे। इस दुर्घटना में करीब 800 लोग मारे गए थे… और दर्दनाक बात ये है की इस हादसे में कई लोगों के शव आज तक नहीं मिले हैं.
देश के इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा हादसा उत्तरप्रदेश में हुआ था… 20 अगस्त, 1995 को उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के पास पुरुषोत्तम एक्सप्रेस हादसे का शिकार हो गई थी. ट्रैक पर खड़ी हुई कालिंदी एक्सप्रेस से पुरुषोत्तम एक्सप्रेस टकरा गई थी. आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या लगभग 305 की थी. और कई लोग इस हादसे में घायल हुए थे.
इसके बाद अगस्त 1999 में पश्चिम बंगाल के गैसल में भीषण रेल हादसा तीसरा सबसे बड़ा रेल हादस माना जाता है… इस हादसे में करीब 285 लोगों की जान गई थी और 300 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. उस समय़ ब्रह्मपुत्र मेल और अवध असम एक्सप्रेस की बीच टक्कर से ये हादसा हुआ था…..
इसके अलावा 26 नवंबर, 1998 में पंजाब के खन्ना में हुए भीषण रेल हादसे की वजह से 212 लोगों अपनी जान गंवा चुके हैं….
20 नवंबर, 2016 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुए ट्रेन हादसे में 152 लोगों की मौत हो गई और 260 घायल हो गए थे…
28 मई, 2010 को पश्चिम बंगाल के झारग्राम में हुए रेल हादसे में 148 यात्री और 9 सितंबर, 2002 को बिहार के रफीगंज में हुए रेल हादसे में 140 यात्रियों की मौत हुई थी….
और इसी तरह 2 मई 2023 को ओड़िसा का ये रेल हादसा देश के इतिहास के सबसे बड़े हादसों में से एक बन गया जिसमें करीब 280 लोगों ने अपनी जान गंवा दी…
कुल मिला कर अगर हम बात करें तो छोटे बड़े ऐसे कई हादसे हैं जिनमें 50 तो कभी 100 से ज्यादा लोगों की मौतें हो चुकी हैं… हर साल कई सौ दुर्घटनाएं रेलवे में देखने को मिलती हैं…
और ये सभी हादसे हमारे देश की रेल सेवाओं पर बहुत बड़े सवालिया निशान उठाते हैं….
पिछले 10 सालों में 2.6 लाख लोगों ने रेल हादसों में अपनी जान गंवाई है… इनमें ट्रेन से गिरना औऱ ट्रेन के नीचे आ जाने के साथ-साथ अन्य तरह के मामले भी शामिल हैं…
ये बड़ी बात इसीलिए है क्योंकि भारतीय रेलवे से करोड़ों लोग जड़े हुए हैं… रेलवे के मुताबिक भारत में हर दिन 2 करोड़ से ज्यादा लोग ट्रेन से सफर करते हैं. ये 2 करोड़ लोग हर दिन करीब-करीब 14, 000 ट्रेनों की सवारी करते हैं.
ऐसे में हमें सबसे पहले भारत के रेलवे नेटवर्क को समझने की जरूरत है…..
165 साल पुरानी इंडियन रेलवे का NETWORK करीब 67, 956 किलोमीटर लंबा फैला हुआ है… 16 अप्रैल 1853 को बम्बई में पहली पेसेंजर ट्रेन करीब 34 किलोमीटर चलती है बोरीबंदर से ठाणे… फिर 1854 औऱ 1856 में रेल लाइन को east और south में भी शुरु किया गया…
1864 में फिर कलकत्ता से दिल्ली तक की रेल लाइन की शुरुआत होती है और 1869 तक अंग्रेज 9700 किलोमीटर की रेल लाइन देशभर में बिछा देते हैं… और 1929 तक इसकी लंबाई 66, 000 हजार हो जाती है….
फिर आजादी के वक्त भारत में कुल Railway Network 53, 996 का रह जाता है क्योंकि 40 percent रेल लाइन पाकिस्तान के पास चली जाती है….
ऐसे मे आजादी के वक्त मिली 53, 996 किलोमीटर लंबी रेल लाइन 2009 में मात्र 64, 099 तक ही पहुंची जो आज की तारीख में 67, 956 किलोमीटर लंबी है…
आजादी के बाद सरकार रेलवे में electrification में तेजी के साथ-साथ अन्य तरह के कई साारे development करती है जैसे online booking और अन्य तरह की फेसेलिटीस… इसके साथ-साथ इंडियन रेलवे में bullet train, high speed और semi speed ट्रेन की बात भी होती रहती है लेकिन रेल हादसों को लेकर ज्यादा कुछ सुनने को नहीं मिलता है…
ज्यादातर मामलों में इंसानी गतली या पुराने सिग्नलिंग उपकरणों का इस्तेमाल होने की वजह रेल हादसे देखने को मिलते हैं… करीब 57% rail accidents लापरवाही की वजह से देखने को मिलते हैं… इन सब बातों को प्वाइंट्स में देखने की कोशिश करते हैं..
1. क्योंकि नंबर ऑफ ट्रेन्स Railwar track के हिसाब से बहुत कम है इसलिए ये हादसे देखने को मिलते हैं…. सरकार का पूरा ध्यान ट्रेन की संख्या को बढ़ाने में लगा है ना की देश में रेल नेटवर्क को बढ़ाने में इसीलिए कभी एक ट्रेन दूसरे ट्रेन के रास्ते में आकर उससे टकरा जाती है या देरी से अपनी यात्रा पूरी करती है… आज मौजूद 67, 956 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन में महज 23 प्रतिशत ही हमने आजादी के बाद बनाई हैं.
2. इसके अलावा infrastructure भी बहुत बड़ा कारण हैं इस तरह के हादसों का…. करीब 60% रेल हादसे ट्रेन के पटरी से उतरने की वजह से होते हैं…. क्योंकि पटरी या तो अंग्रेजों के जमाने की ही बनी हुई है… या उसकी मरम्मत समय पर नहीं की जाती है…. हर साल साढ़े
चार से लेकर 5 हजार किलोमीटर तक की पटरियों की मरम्मत होनी चाहिए जो असल में बहुत कम पटरियों पर की जाती है… हर साल इन रेलवे ट्रैक के रिनुअल के लिए बजट कम होता जा रहा है… 2017 से 21 के बीच में ट्रेन के पटरी से उतरने की वजह से करीब 11,27 हादसे हुए थे.
3. वहीं ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए भी सरकार द्वार ज्यादा प्रयास नहीं कि गए हैं… 2003 में Anti Collision Devise का प्रशिक्षण किया गया था जिसके बाद 23 मार्च 2022 को रेल मंत्रालय ने ‘कवच’ नाम से स्वचालित ट्रेन सुरक्षा यानी की (automatic train protection) system की घोषणा की थी… लेकिन इस पर उस गती से काम नहीं किया गया… एक साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी केवल 14,55 किलोमीटर के रूट पर ही इसे लगाया गया है… हालांकी कहा ये भी जा रहा है 3000 पर इसे लगाने का काम जारी है… पर हादसे के बाद सवाल उठना लाजिमी ही है..
हादसों में जवाबदेही
हर साल 100 से ज्यादा होने वाले रेल हादसों की जवाबदेही तय कैसे होगी…
हादसे के बाद हर बार जांच बैठा दी जाती है… संभवतह निचले अधिकारियों औऱ कर्मचारियों पर उनकी लापरवाही औऱ गलती को लेकर कार्रवाई भी की जाती होगी… लेकिन बड़े अधिकारिों और मंत्रियों का क्या… वैसे नैतिकता आधार पर हमारे देश में रेल मंत्री बड़े हादसों पर इस्तीफा दे चुके हैं… जो कई माय़नों में जवाबदेही तय करता है…
इस लिस्ट में लाल बहादुर शास्त्री पहले नंबर पर आते हैं जिन्होंने 1956 में तमिलनाडु के अरियालुर में हुए हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था…. इसी तरह माधव राव सिंधिया, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और सुरेश प्रभु भी अपने पदों से या तो इस्तीफा दे चुके थे या इस्तीफे की पेशकश कर चुके थे…. इस बार अगर इसी तरह की मांग मौजूदा रेल मंत्री अश्विनि वैश्नव से की जाती है या वो स्वयं इस्तीफा देते हैं तो उसे भी नैतिक ही माना जाएगा…
ओडिशा के रेल हादासे ने एक बार फिर से देश में रेल यात्रियों की सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं…. और सरकार को कटघरे में खड़ा किय़ा है….
क्या हर बार यात्रियों की मौत की कीमत लगा दी जाएगी और फिर हादसे को भूल दिया जाएगा….या भारतीय रेल की दशा को सुधारा जाएगा ताकी ऐसे बड़े हादसे ना हों….
क्योंकि जब हादसा तो वहां की तस्वीरें, चीखें और भीड़ हमें कुछ ही समय तक याद रहती हैं…. कुछ समय बाद सब सामान्य सा हो जाता है…
मानों मुआवजे से इन मौतों को भुला दिया गया हो… ऐसा नहीं होना चाहिए… बिल्कुल नहीं होना चाहिए… क्योंकि इंसानी जान की कीमत किसी मुआवजे से कई ज्यादा है…
ओडिसा में मारे गए सभी लोगों के परिजनों के साथ हमारी संवेदनाएं हैं और उम्मीद करते हैं की इस तरह के हादसे दोबारा कभी ना देखने को मिलें.. मेरा नाम विकेश है औऱ आप सुनेगा इंडिया देख रहे हैं.