उत्तराखंड में दर्दनाक सड़क हादसा: 36 लोगों की मौत
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में एक बेहद दर्दनाक सड़क हादसा हुआ, जिसमें 36 लोगों की जान चली गई। 60 से ज्यादा लोगों से भरी एक बस करीब 600 मीटर गहरी खाई में गिर गई, और उसके बाद हाहाकार मच गया। हादसा रामनगर से 35 किलोमीटर पहले मरचूला क्षेत्र में हुआ। बस नैनीडांडा के किनाथ से रामनगर जा रही थी, और उसमें कई यात्री दिवाली की छुट्टियों के बाद अपने-अपने घरों को लौट रहे थे। किसी ने नहीं सोचा था कि यह सफर उनके लिए आखिरी साबित होगा।
ओवरलोडिंग बनी वजह
हादसे की सबसे प्रमुख वजह ओवरलोडिंग बताई जा रही है। जानकारी के अनुसार, 40 सिटरों वाली बस में 60 से ज्यादा लोग सवार थे। एक मोड़ पर ड्राइवर बस पर नियंत्रण खो बैठा, और बस सीधी गहरी खाई में गिर गई। हालांकि, ऐसा एक हादसा नहीं है, बल्कि उत्तराखंड में इस तरह के हादसे लगातार हो रहे हैं। पिछले 24 सालों में लगभग 20,000 लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें से लगभग 5,500 लोग तो केवल पिछले 5 सालों में हादसों का शिकार हुए हैं।
क्या सरकार कुछ कर रही है?
ऐसे भयंकर हादसों के बावजूद सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम उठाए जाते नहीं दिखाई देते। उत्तराखंड की सड़कों की हालत आज भी ठीक नहीं है। सड़कें गड्ढों से भरी हुई हैं, क्रैश बैरियर नहीं लगाए गए हैं, और बसों की फिटनेस जांचने की कोई सख्त प्रक्रिया नहीं है। हर साल लाखों लोग पहाड़ों पर सड़कों के जरिए यात्रा करते हैं, लेकिन सुरक्षा की कोई व्यवस्था नजर नहीं आती।
ओवरलोडिंग की समस्या
वहीं, पहाड़ी क्षेत्रों में ओवरलोडिंग की समस्या भी बेहद गंभीर है। सरकार की ओर से पर्वतीय क्षेत्रों में बसों की संख्या में कोई इजाफा नहीं किया गया है। त्योहारों के दौरान शहरों में बसों की संख्या बढ़ाने वाली सरकार क्या पहाड़ों पर भी ऐसी व्यवस्था लागू करती है? जवाब है नहीं। सरकारें इस गंभीर मुद्दे को सिरे से नजरअंदाज कर रही हैं।
नेताओं की सुरक्षा और आम लोगों की जान
यहां सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जब किसी मंत्री की गाड़ी का काफिला किसी रास्ते से गुजरता है, तो वहां पूरी सुरक्षा व्यवस्था होती है। ट्रैफिक रोका जाता है, गाड़ियों की चेकिंग की जाती है, ताकि मंत्री की जान को कोई खतरा न हो। लेकिन जब सामान्य नागरिकों की जान दांव पर होती है, तो उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। इस लापरवाही के कारण ही सड़कों पर इस तरह के हादसे घटते रहते हैं।
कौन है जिम्मेदार?
अल्मोड़ा हादसे में केवल ड्राइवर और परिवहन विभाग के अधिकारियों को दोषी ठहराना ठीक नहीं होगा। इस हादसे के जिम्मेदार वे लोग भी हैं जिनकी जिम्मेदारी थी कि वे ऐसे हादसों को रोकें। यानी सरकार और नेता, जिनके पास हादसों को रोकने की शक्ति और जिम्मेदारी है, लेकिन वे इस गंभीर समस्या को अनदेखा कर रहे हैं।
हादसे के बाद प्रशासन की ओर से हमेशा जांच और सस्पेंशन की घोषणा की जाती है, लेकिन कोई ठोस उपाय नहीं किए जाते। पहाड़ों की सड़कों की हालत नहीं सुधरती, ओवरलोडिंग पर कोई कार्रवाई नहीं होती, और सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए जाते।
स्वास्थ्य व्यवस्था की भी हालत
हादसे के बाद जब गंभीर रूप से घायल लोगों को अस्पतालों में पहुंचाया जाता है, तो वहां इलाज की उचित सुविधाएं नहीं मिल पातीं। पहाड़ों के अस्पतालों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है, जिससे हादसों में घायल लोगों को उचित इलाज नहीं मिल पाता।
भविष्य की उम्मीदें
इससे साफ है कि हादसों के बाद नेताओं की नाराजगी झेलने के बावजूद, सरकारों की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। लोग गुस्से में आते हैं, लेकिन चुनावों के समय वही पुरानी बातों से ही संतुष्ट रहते हैं। इससे यह भी साबित होता है कि सरकारें आम आदमी की जान को कभी गंभीरता से नहीं लेतीं।
अब सवाल यह उठता है कि जब तक जनता अपने हक के लिए सचेत नहीं होगी, तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे। अल्मोड़ा हादसे के बाद भी यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि सरकार बड़े कदम उठाएगी। हम केवल दुआ कर सकते हैं कि भविष्य में इस तरह के खौ़फनाक हादसे ना हों।