उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025: महिला आरक्षण पर उठे सवाल, पर्दे के पीछे दिखा पुरुषों का दबदबा
उत्तराखंड में पंचायत चुनावों के दौरान एक बार फिर महिला आरक्षण की उपयोगिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। भले ही राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के तहत महिलाओं को 50% आरक्षण दिया गया हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी अलग नजर आ रही है।
हालिया चुनावों में महिला प्रत्याशियों की जगह उनके पति, देवर, ससुर या अन्य पुरुष रिश्तेदार सक्रिय रूप से उनके नामांकन से लेकर प्रचार तक सभी कार्यों में आगे नजर आए। इस चलन ने एक बार फिर यह प्रश्न उठाया है कि क्या महिला आरक्षण का असल लाभ महिलाओं तक पहुंच भी पा रहा है?

नामांकन से लेकर प्रचार तक पुरुषों का वर्चस्व
पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग विकासखंड सहित कई अन्य इलाकों में अधिकांश नामांकन पुरुषों द्वारा ही जमा कराए गए। महिला प्रत्याशियों की उपस्थिति नाम मात्र की रही। कई जगहों पर प्रचार के दौरान भी प्रत्याशियों की जगह उनके पति और पुरुष परिजन ही नजर आए।
स्थानीय लोगों ने चिंता जताई है कि इस तरह की स्थिति में महिलाएं न तो निर्णय ले पा रही हैं और न ही प्रशासनिक कार्यों में अपनी भूमिका निभा पा रही हैं। ऐसे में आरक्षण केवल नाम का ही रह गया है।
महिला नेताओं ने उठाई आवाज
पूर्व ग्राम प्रधान ममता देवी और पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य कमला देवी ने बताया कि उन्होंने कभी अपने कामों में पति या अन्य पुरुषों को हस्तक्षेप नहीं करने दिया। वे खुद सरकारी दफ्तरों में जाकर, योजनाओं के क्रियान्वयन से लेकर जनसंपर्क तक का कार्य करती हैं।
उन्होंने अन्य महिलाओं से भी अपील की कि वे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहें और खुद आगे आकर नेतृत्व संभालें।

स्थानीय प्रत्याशी की पीड़ा
भट्टीगांव पुगराऊं, पांखू से प्रधान प्रत्याशी सोनी रौतेला ने कहा:
“50 प्रतिशत महिला आरक्षण का लाभ महिलाओं को नहीं मिल रहा है। उनके पति, ससुर, जेठ या देवर चुनावी प्रक्रिया में जबरन हस्तक्षेप कर रहे हैं। यह स्थिति केवल बेरीनाग में नहीं, बल्कि पूरे जिले में देखने को मिल रही है। सरकार को इस पर कड़ी नीति बनानी चाहिए।”
क्या वास्तव में सशक्त हो पा रही हैं महिलाएं?
सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए लागू किया गया 50% आरक्षण यदि महज कागजों पर रह जाए और वास्तविक रूप से पुरुष ही संचालन करते रहें, तो महिला नेतृत्व और स्थानीय लोकतंत्र की आत्मा को ठेस पहुंचेगी। यह आवश्यक है कि महिलाएं न सिर्फ चुनाव लड़ें, बल्कि वास्तव में जिम्मेदारियां निभाएं और उनके निर्णयों का सम्मान किया जाए।