सोनम वांगचुक बोले: आंदोलन करना भी राष्ट्रधर्म, समाज की बेहतरी के लिए उठानी होगी आवाज
देहरादून
प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता और लद्दाख से जुड़े पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक ने कहा है कि “आंदोलन करना भी एक प्रकार का राष्ट्रधर्म है”। उन्होंने सरकारों और समाज से अपील की कि जो लोग सामाजिक हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें ‘आंदोलनजीवी’ कहकर मजाक न बनाया जाए।
वह नगर निगम टाउन हॉल में आयोजित सुंदरलाल बहुगुणा स्मृति पर्यावरण सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे थे। उन्होंने बहुगुणा जी के आंदोलन और पर्यावरण के प्रति उनके योगदान को याद करते हुए कहा कि हिमालय केवल पर्वत नहीं, बल्कि जीवनदायिनी शक्ति है।
वांगचुक ने कहा कि जब अच्छे लोग चुप हो जाते हैं, तो बुराई और ज्यादा बढ़ जाती है। उन्होंने सरकारों से मांग की कि विकास कार्य स्थानीय लोगों की भागीदारी से हों और हिमालयी संस्कृति को नष्ट करने से बचाया जाए।
उन्होंने आगे कहा कि दलाई लामा भी सुंदरलाल बहुगुणा का सम्मान करते थे और अक्सर उन्हें “माई फ्रेंड सुंदरलाल” कहकर संबोधित करते थे।
हिमालय प्रहरी सम्मान इस वर्ष दिवंगत जनकवि घनश्याम ‘सैलानी’ और सरला बहुगुणा की पुत्री टीका बहुगुणा को प्रदान किया गया।
हिमालय को देवता की तरह मानें: सोनम वांगचुक
वांगचुक ने कहा कि हिमालय को शुद्ध हवा देने वाला देवता माना जाए। जैसे शिवजी की जटाओं से गंगा निकलती है, वैसे ही हिमालय की पर्वत श्रंखलाओं से जीवनदायिनी नदियाँ निकलती हैं। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को आध्यात्मिक जिम्मेदारी बताया।
विकास के नाम पर ठगी: लद्दाख जैसा धोखा उत्तराखंड में न हो
उत्तराखंड महिला मंच और इंसाफ मंच की गोष्ठी में सोनम वांगचुक ने कहा कि विकास के नाम पर पहाड़ी राज्यों में स्थानीय लोगों से धोखा किया जा रहा है। उन्होंने कॉरपोरेट हितों के बजाय जन-हितकारी नीतियों की मांग की।
उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार हो, सत्ता का चरित्र एक जैसा होता है — इसलिए जरूरी है कि नागरिक सवाल पूछें और गलत निर्णयों का विरोध करें, चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो।