भारतीय राजनीति में अटल बदलाव: लोकतंत्र के मुद्दे और सत्ता का घमंड
पहले लग रहा था हमारे देश में लोकतंत्र को लेकर क्या एक गलत धारणा लोगों के मन में बन चुकी है। पहले लग रहा था ज्यादातर लोगों को संविधान के जीने या मरने से कोई फरक नहीं पड़ता। लेकिन 4 जून के नतीजों ने दिखा दिया की आज भी हमारे देश में हुंदू-मुस्लिम से ऊपर है गरीबी का मुद्दा, बेरोजगारी का मुद्दा, मंहगाई का मुद्दा और सबसे जरूरी संविधान को बचाए रखने का मुद्दा। केंद्र में गुजरातियों की सरकार का अंत हो चुका है। माफ कीजिए, बाकी गुजरातियों से कोई बैर नहीं है। लेकिन दिल्ली में बैठ कर पूरे देश को अपने हिसाब से चलाने वाले दोनों गुजरातियों की सरकार शायद अब दोबारा लोकतंत्र को खत्म करने की ना सोचें। सरकार चाहे किसी की भी बने, बस खुशी इस बात की है की विपक्ष की मजबूती से अब कोई भी गोडसे का नाम लेकर संविधान को खत्म करने की बात तो क्या उसके बारे में सोचेगा तक नहीं। राहुल गांधी हो या फिर नरेंद्र मोदी, कोई भी प्रधानमंत्री बने लेकिन खुशी इस बात की होगी की किसी को प्रधानमंत्री होने का घमंड तो बिल्कुल नहीं होगा। सारे देश में 400 पार का नारा देने वालों ने ये नहीं सोचा था की लोकतंत्र हमें संयमित रहना सिखाता है, ना ही घमंडी होना सोचा। उन मीडिया वालों ने भी नहीं होगा की देश किसी व्यक्ति से नहीं बल्कि संविधान से चलता है। एक न्यूज एजेंसी की पत्रकार ने जब कहा था की क्या ये देश एक किताब से चलेगा तो उसे आज जवाब मिल गया होगा की हां, देश किताब से ही चलेग और उस किताब का नाम हे संविधान।
देश को हिंदू मुस्लिम के नाम पर बांटने वाले लोग आज निराश हो रहे होंगे की अब किसके नाम पर वो हिंदू मुस्लिम करेंगे। घरों में, दुकानों में, नुक्कड़ों और यारों में जो लोग रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा की जगह केवल हिंदू-मुस्लिम किया करते थे उन्हें आज दुख हो रहा होगा। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। सत्ता का घमंड लोगों को सांप्रदायिक बनाता है, अंहकारी बनाता है, खुद को भगवान का अवतार तक बताने को मजबूर करता है। लेकिन अब सत्ता का घमंड किसी में देखने को नहीं मिलेगा। और मिलेगा भी तो शायद जनता फिर से उस घमंड को चूर चूर करने का काम करेगी।
देश को एक अच्छी सरकार मिले जो लोकतंत्र को मजबूत बनाए। लोकसभा के चुनावों ने ना सिर्फ अयोध्या में एक बड़ा सबक सत्ताधारियों को सिखाया। बल्की लखीमपुर खीरी में भी देश ने एक ऐसे व्यक्ति को सत्ता से बाहर फेंका जिसे किसानों की हत्या का पाप लगा। अमेठी में भी एक ऐसी हार मिली जिसने ये बताया की सत्ता का लालच करते हुए कोई भी गड़बड़ी कर सकता है।