20 दिव्यांग बालकल्याण संस्थाओं की उच्च स्तरीय जांच के आदेश !
दिव्यांग बच्चों के कल्याण, पुनर्वास और उपचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं को लेकर डीएम सौरभ बंसल ने गंभीर रुख अपनाया है। देहरादून में कार्यरत 20 बालकल्याण संस्थाओं के खिलाफ मिल रही लगातार शिकायतों के बाद डीएम ने इन पर उच्च स्तरीय जांच समिति गठित करने के आदेश दिए हैं। ये संस्थाएं दिव्यांग बच्चों को अपने केंद्रों में दाखिला देने से इनकार कर रही थीं और इनकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
क्या है मामला?
सूत्रों के अनुसार, ये संस्थाएं समाज कल्याण विभाग में पंजीकृत हैं और दिव्यांग बच्चों की देखभाल, शिक्षा व उपचार के नाम पर राज्य और केंद्र सरकार से बड़ी धनराशि प्राप्त कर रही हैं। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है।
- कई संस्थाओं ने दस्तावेजों में जो आंकड़े पेश किए हैं, जैसे कि बच्चों की संख्या, स्टाफ की उपस्थिति, संसाधनों की उपलब्धता – वे स्थल निरीक्षण के दौरान झूठे पाए गए।
- जरूरतमंद बच्चों को दाखिला देने से इनकार किया जा रहा है, जिससे उनके पुनर्वास में रुकावट आ रही है।
- कई संस्थाएं सिर्फ कागजों में सक्रिय दिखती हैं, जबकि वास्तविक सेवाएं नगण्य हैं।
डीएम ने जताई कड़ी नाराजगी
डीएम सौरभ बंसल ने इस पूरे मामले को गंभीर मानवाधिकार हनन मानते हुए कहा कि यह अत्यंत चिंता का विषय है कि जो संस्थाएं दिव्यांग बच्चों के जीवन सुधार की जिम्मेदारी ले रही हैं, वही उन्हें प्रवेश देने से मुकर रही हैं।
उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि:
“सभी 20 संस्थाओं की उच्च स्तरीय समिति द्वारा गहन जांच की जाएगी और रिपोर्ट निर्धारित समयसीमा में प्रस्तुत करनी होगी। अगर किसी संस्था के खिलाफ अनियमितताएं साबित होती हैं, तो उनका पंजीकरण तत्काल रद्द कर दिया जाएगा।”
समिति को जांच के लिए सौंपे गए 10 बिंदु
गठित समिति को संस्थाओं की जांच के लिए 10 बिंदुओं पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है। इसमें शामिल हैं:
- बच्चों की वास्तविक संख्या
- स्टाफ की उपस्थिति
- फिजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिति
- स्वास्थ्य सुविधाएं
- शैक्षणिक गतिविधियां
- सरकारी अनुदान का उपयोग
- संस्थाओं का व्यावसायिक लाभ
- शिकायतों का सत्यापन
- दस्तावेजों की वैधता
- बच्चों के दाखिले की प्रक्रिया
निष्कर्ष
यह कार्रवाई राज्य प्रशासन की ओर से दिव्यांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक साहसिक कदम है। अगर जांच निष्पक्ष और सख्ती से की जाती है, तो इससे न केवल दोषी संस्थाओं पर कार्रवाई होगी, बल्कि आने वाले समय में बाल कल्याण संस्थाओं की कार्यशैली में पारदर्शिता भी आएगी।