राष्ट्रीय किसान यूनियन ने बिहार-झारखंड के किसानों की आंदोलन की तैयारी की
राष्ट्रीय किसान यूनियन ने लोकसभा चुनाव से पहले बिहार-झारखंड सहित पूरे देश में किसानों की विभिन्न मांगों के समर्थन में आंदोलन का आयोजन करने का निर्णय लिया है। इसके तैयारी में राजधानी दिल्ली तक को हिला देने का इरादा है। यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत बिहार-झारखंड दौरे पर हैं और इस उद्देश्य से तैयारी कर रहे हैं। इस दौरान, उन्होंने बिहार-झारखंड के चुनावों से पहले तीन अधूरी सिंचाई परियोजनाओं की स्थिति को जानने, उनकी पूर्णता के लिए प्रयास करने, और किसानों की अन्य समस्याओं का समाधान करने के लिए सभी स्थानीय विद्वेषियों से मिलकर रणनीति बनाई है।
आंदोलनों की घोषणा के तहत, राष्ट्रीय किसान यूनियन ने बिहार-झारखंड सहित पूरे देश में किसानों के विभिन्न मुद्दों के समर्थन में आंदोलनों की तैयारी की है। इस तैयारी को अमलीजामा देने के लिए राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत बिहार-झारखंड के दौरे पर हैं और तीन चुनावों से बन रही बिहार-झारखंड की संयुक्त परियोजना उत्तर कोयल और हड़ियाही डैम परियोजना के उद्गम स्थल का दौरा किया है, साथ ही विस्थापितों से मिलकर रणनीति बनाई है और सभी सभाओं को संबोधित किया है।
बिहार के शाहाबाद प्रमंडल में इंद्रपुरी और दुर्गावती जलाशय परियोजनाओं के संबंध में संगठन के लोग भी स्थानीय विद्वेषियों के साथ संपर्क में हैं। इससे स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों से पहले एक बड़े किसान आंदोलन की तैयारी पूरी हो गई है और इसे अमलीजामा पहनाना शुरू किया गया है। झारखंड में उत्तर कोयल नहर परियोजना के उद्गम स्थल कूटकू डैम और हड़ियाही नहर परियोजना के उद्गम स्थल हड़ियाही डैम की जानकारी के बाद, राकेश टिकैत ने शनिवार को प्रेसवार्ता की।
‘किसानों की सभी समस्याओं को लेकर यूनियन गंभीर’
प्रेसवार्ता में टिकैत ने कहा कि राष्ट्रीय किसान यूनियन बिहार-झारखंड सहित देश के किसानों, कृषि मजदूरों, विस्थापितों की समस्याओं और एमएसपी कानून को लेकर गंभीर है। सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की, उन्हें किसानों से नहीं, बल्कि उनकी जमीन को लूटने की इच्छा है। जो किसान 150-170 साल से पुरखों के जमाने से खेती कर रहे हैं, उनसे उनकी जमीन छीनी जा रही है। उन्होंने कहा कि इससे किसान डरेंगे तो उनकी जमीन हाथ से जाएगी। मुआवजा तक नहीं मिलेगा। इसलिए डरने की नहीं लड़ने की जरूरत है। आंदोलन करने की जरूरत है। आंदोलन करने से ही सब कुछ मिलेगा। हमने 13 माह तक दिल्ली में किसान आंदोलन चलाया। आंदोलन को नक्सलियों और खालिस्तानियों का आंदोलन कहा गया। इसके बावजूद हम डटे रहे। परिणाम सामने आया। केंद्र सरकार को तीनों काले कृषि कानून वापस लेने पड़े। इसलिए डरने की जरूरत नहीं है।