उपराष्ट्रपति धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट पर निशाना, बोले- “आर्टिकल 142 बना न्यायपालिका का परमाणु मिसाइल”
नई दिल्ली – उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है, जिसमें न्यायालय ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा निर्धारित करने को कहा था। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 अब ऐसा परमाणु मिसाइल बन गया है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं पर लगातार लहरा रहा है।
उपराष्ट्रपति ने सवाल उठाया कि सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति को निर्देश देने का अधिकार किसने दिया। उन्होंने कहा कि संविधान की भावना के अनुसार, अदालतें सिर्फ उसकी व्याख्या कर सकती हैं, न कि कार्यपालिका या विधायिका को आदेश देने का अधिकार रखती हैं।
धनखड़ ने राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा कि लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जनता द्वारा चुनी गई सरकार की होती है। उन्होंने कहा, “कोई संस्था संविधान से ऊपर नहीं है।”
अनुच्छेद 142 और राष्ट्रपति की भूमिका पर सवाल
धनखड़ ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय को पूर्ण न्याय देने का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को आदेश दिया जा सके। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं, और न्यायालय को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर न जाए।
उपराष्ट्रपति ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ जज अब कानून बनाने, कार्यपालिका की भूमिका निभाने और सुपर संसद बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं — बिना किसी जवाबदेही के।
न्यायपालिका की जवाबदेही पर सवाल
धनखड़ ने यह भी सवाल उठाया कि जब हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से कथित रूप से जले हुए नोट मिले तो अब तक एफआईआर क्यों नहीं दर्ज हुई। उन्होंने कहा कि अगर यही मामला किसी आम आदमी के साथ हुआ होता, तो कार्रवाई तुरंत होती।
उन्होंने न्यायपालिका की संपत्ति घोषणाओं पर भी टिप्पणी की, और कहा कि जब सांसदों और विधायकों को संपत्ति घोषित करनी होती है, तो जज क्यों अपारदर्शी रहते हैं?
विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया
धनखड़ की टिप्पणियों पर विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया है। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि उपराष्ट्रपति को संयम बरतना चाहिए था और उन्होंने तमिलनाडु के राज्यपाल के संविधान के उल्लंघन पर चुप्पी साधने पर सवाल उठाया।
डीएमके, सीपीआई और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल समेत कई नेताओं ने उपराष्ट्रपति की टिप्पणी को ‘अनैतिक’ और ‘लोकतंत्र के लिए खतरनाक’ बताया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और अनुच्छेद 142
ध्यान देने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच विधेयकों को लेकर जारी विवाद पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि राज्यपाल राष्ट्रपति को बिल भेजने के बाद उसे अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति के फैसलों की भी न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट पूरे भारत में लागू आदेश देने का अधिकार रखता है, लेकिन इन आदेशों के कार्यान्वयन की प्रक्रिया संसद के कानूनों से निर्धारित होती है। यदि कानून नहीं बने हैं, तो यह जिम्मेदारी राष्ट्रपति की होती है।