जम्मू में ‘वंदे मातरम’ कार्यक्रम पर मुस्लिम संगठनों की नाराजगी, उमर अब्दुल्ला ने दी सफाई
जम्मू: जम्मू-कश्मीर में ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित सामूहिक गायन कार्यक्रम को लेकर राजनीतिक और धार्मिक विवाद गहराता जा रहा है।
राज्य के मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने इस आयोजन पर कड़ी आपत्ति जताई है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट किया है कि यह निर्णय राज्य कैबिनेट की मंजूरी के बिना लिया गया था।
🕊️ क्या है पूरा मामला
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के स्कूलों में हाल ही में ‘वंदे मातरम’ का पाठ अनिवार्य किया गया था।
यह फैसला संस्कृति विभाग के निर्देशों के तहत लिया गया, जिसमें छात्रों और सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के आदेश दिए गए थे।
राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने खुद जम्मू में आयोजित एक समारोह में
‘वंदे मातरम’ का सामूहिक गायन किया, जिसमें सांसदों, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया।
📜 मुस्लिम संगठनों की आपत्ति
घाटी के प्रमुख धार्मिक संगठन मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा (MMU),
जो मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व में काम करता है,
ने इस आयोजन को “गैर-इस्लामी” करार दिया।
एमएमयू का कहना है कि यह कार्यक्रम
“आरएसएस की विचारधारा थोपने का प्रयास”
है और इसे इस्लामी आस्था के खिलाफ बताया गया।
उन्होंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से
‘जबरदस्ती वाले निर्देशों’ को वापस लेने की मांग की।
मुस्लिम संगठनों का तर्क है कि राष्ट्रीय गीत में भक्ति के कुछ ऐसे भाव हैं जो इस्लाम के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं,
क्योंकि इसमें सृष्टिकर्ता के अलावा किसी और की आराधना का भाव झलकता है।
🗣️ उमर अब्दुल्ला की सफाई
पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा —
“यह फैसला कैबिनेट का नहीं है।
शिक्षा मंत्री ने इस पर कोई हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
हमें बाहरी निर्देशों के बजाय खुद तय करना चाहिए कि हमारे स्कूलों में क्या पढ़ाया जाए।”
अब्दुल्ला ने संकेत दिया कि इस फैसले के पीछे राज्य सरकार की सहमति नहीं थी,
बल्कि यह कदम प्रशासनिक स्तर पर लिया गया है।
🇮🇳 उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का संदेश
इस समारोह में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने
‘वंदे मातरम’ के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को श्रद्धांजलि दी।
उन्होंने कहा —
“यह गीत मां भारती और उसके पुत्रों के बीच बंधन को मजबूत करता है
और लोगों को स्वतंत्रता हासिल करने की प्रेरणा देता है।”
सिन्हा ने युवाओं से आह्वान किया कि
“भारत के विकास में योगदान देना ही
मां भारती के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।”
📖 ‘वंदे मातरम’ का इतिहास
‘वंदे मातरम’ की रचना 7 नवंबर 1875 को
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी।
यह पहली बार उनकी साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में
उपन्यास ‘आनंदमठ’ के एक अंश के रूप में प्रकाशित हुआ।
गीत में मातृभूमि को शक्ति, समृद्धि और दिव्यता का प्रतीक बताया गया है।
1900 के दशक की शुरुआत में यह गीत स्वतंत्रता संग्राम का नारा बन गया था।
⚖️ विवाद की जड़ क्या है
हालांकि अधिकांश भारतीयों के लिए ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रगौरव और स्वतंत्रता का प्रतीक है,
परंतु कुछ मुस्लिम संगठनों का मानना है कि
गीत के कुछ हिस्सों में पूजा या भक्ति के भाव हैं,
जो इस्लामिक आस्था के अनुरूप नहीं हैं।
यही वजह है कि घाटी में इस पर धार्मिक आपत्ति और राजनीतिक मतभेद दोनों देखने को मिल रहे हैं।

