IPL इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक: RCB की जीत के जश्न में मची भगदड़ ने ली 11 से अधिक लोगों की जान
रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की ऐतिहासिक जीत का जश्न, जो 18 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आया, एक बड़े हादसे की भेंट चढ़ गया। यह घटना न केवल इस बहुप्रतीक्षित जीत पर एक गहरा कलंक बन गई, बल्कि देश में क्रिकेट और उससे जुड़े उत्सवों के अतिउत्साही और ओवरहाइप्ड रवैये की खामियों को भी उजागर करती है।
बैंगलोर में आरसीबी की जीत के बाद भारी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए। परेड और सेलिब्रेशन के लिए लाखों की भीड़ उमड़ी, लेकिन इन हालात से निपटने के लिए कोई ठोस प्रशासनिक इंतजाम नहीं थे — यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब यह ज्ञात हो कि स्वयं कर्नाटक के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री कार्यक्रम में उपस्थित थे।
स्टेडियम के भीतर और बाहर जमा भारी भीड़, सड़कों पर लगा लंबा ट्रैफिक जाम, अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था और एंबुलेंस की सीमित उपलब्धता जैसी खामियों ने मिलकर इस पूरे आयोजन को एक भयावह दुर्घटना में बदल दिया। जबकि भीतर आरसीबी की टीम जीत का जश्न मना रही थी, बाहर भगदड़ में कई लोगों की जान चली गई। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि हादसे के बावजूद कार्यक्रम काफी देर तक चलता रहा।
यह हादसा एक गहरी सोच की मांग करता है — क्या हम क्रिकेट को एक खेल से अधिक, एक अंधभक्ति बना चुके हैं? क्या IPL की जीत को हमने इतनी बड़ी उपलब्धि बना दिया है कि यह हमारी संवेदनाओं और सार्वजनिक सुरक्षा से ऊपर हो गया?
जिस ट्रॉफी को 18 सालों में सात टीमों ने जीता, उसी ट्रॉफी को आरसीबी के जीतने पर इतना अतिउत्साह क्यों? फैंस की खुशी अपनी जगह, लेकिन जिस स्तर पर इसे हाइप किया गया, वह अस्वाभाविक था। यह केवल फैंस और आलोचकों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि खुद ब्रॉडकास्टर्स और फ्रेंचाइज़ी के मार्केटिंग तंत्र ने इसे ऐसा रूप दिया जैसे विराट कोहली का करियर इस एक ट्रॉफी पर ही निर्भर करता हो।
हकीकत यह है कि विराट कोहली का करियर पहले ही अनेक उपलब्धियों से भरा हुआ है — अंडर 19 वर्ल्ड कप, वनडे और टी20 वर्ल्ड कप, चैंपियंस ट्रॉफी और आधुनिक क्रिकेट इतिहास में उनका नाम सबसे महान खिलाड़ियों में दर्ज है। एक IPL ट्रॉफी न होने से उनका करियर अधूरा नहीं था, लेकिन उसे अधूरा दिखाने का काम मीडिया, मार्केटिंग और फैन कल्चर ने किया। यही ट्रेंड पहले महेंद्र सिंह धोनी के साथ भी देखा गया — जीत के साथ विदाई, करियर को खींचते जाना — सब एक रणनीतिक तमाशा बन गया।
विराट का इमोशनल होना स्वाभाविक था, क्योंकि सालों तक उन्हें याद दिलाया गया कि यह एक चीज उनके नाम नहीं है। लेकिन अब जब ट्रॉफी जीतने के बाद वो भावुक हुए, तो वही लोग यह दिखा रहे हैं कि देखो विराट कितने इमोशनल हो गए — यह पूरा चक्र एक नियोजित भावनात्मक कारोबार बन चुका है।
इस “ओवरहाइप्ड” ड्रामे का नतीजा यह हुआ कि प्रशासन और आयोजक भीड़ का अनुमान लगाकर जरूरी प्रबंध करने में असफल रहे। सरकार और आरसीबी फ्रेंचाइज़ी दोनों ने इस अवसर को प्रचार के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन बिना योजना और सुरक्षा के। और इसका नतीजा — 11 से अधिक लोगों की दुखद मौत।
यह विडंबना ही है कि जहाँ यह दिन बैंगलोर और आरसीबी के फैंस के लिए ऐतिहासिक होना चाहिए था, वहीं यह एक सामूहिक लापरवाही का सबक बन गया।
पहली बार ऐसा नहीं हुआ कि भारत में क्रिकेट की जीत पर भारी भीड़ उमड़ी हो — 2011 के वर्ल्ड कप के बाद भी ऐसा हुआ था। लेकिन तब व्यवस्थाएं अधिक बेहतर थीं। सवाल यह नहीं है कि लोग जश्न क्यों मना रहे थे, सवाल यह है कि क्या उनके लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था थी?
यह आवश्यक है कि खिलाड़ी भी इस ओवरहाइप और ओवरएक्साइटमेंट को बढ़ावा देने के बजाय एक संतुलित संदेश दें। और कर्नाटक सरकार के शीर्ष नेतृत्व — मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री — को इस हादसे की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जब वे स्वयं इस आयोजन में उपस्थित थे, तो उनकी यह जिम्मेदारी बनती थी कि वे सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करें और सार्वजनिक सुरक्षा को राजनीतिक लाभ के ऊपर प्राथमिकता दें।