शहरों में ही नहीं, जंगलों में भी वन्यजीवों के लिए अभिशाप बना प्लास्टिक, विकराल होती जा रही समस्या
प्लास्टिक का उपयोग आज मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यह जहां सुविधाओं को बढ़ाने में सहायक रहा है, वहीं इसके बढ़ते दुष्प्रभाव पर्यावरण और वन्यजीवों के लिए गंभीर संकट पैदा कर रहे हैं। मानव की लापरवाही का खामियाजा अब जंगलों में रहने वाले जीव-जंतुओं को भी भुगतना पड़ रहा है। हाल ही में वन विभाग द्वारा किए गए कई वन्यजीवों के पोस्टमार्टम में उनके शरीर में प्लास्टिक पाया गया, जिससे यह समस्या और भी गंभीर हो गई है।
संरक्षित क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण का बढ़ता प्रभाव
वन्यजीव संरक्षण क्षेत्रों में भी प्लास्टिक की मौजूदगी चिंता का विषय बन चुकी है। संरक्षित क्षेत्रों से गुजरने वाले रेलवे ट्रैक और सड़कें इस प्रदूषण का बड़ा कारण बन रही हैं।
- रेलवे ट्रैक से फैलता कचरा: यात्रियों द्वारा ट्रेन यात्रा के दौरान जंगलों में प्लास्टिक फेंका जाता है, जो वन्यजीवों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
- सड़क किनारे फेंका जाने वाला कचरा: जंगलों से गुजरने वाली सड़कों पर सफर करने वाले लोग खाने-पीने की चीजों के प्लास्टिक पैकेट और बोतलें फेंक देते हैं, जो वन्यजीवों को आकर्षित करता है।
वन्यजीवों के शरीर में मिल रहा प्लास्टिक
हाल ही में वन्यजीवों की मौत के बाद किए गए पोस्टमार्टम में उनके शरीर में प्लास्टिक की मौजूदगी ने विशेषज्ञों को हैरान कर दिया है।
- हाथी, सांभर और अन्य जानवरों के पाचन तंत्र में प्लास्टिक पाया गया है।
- प्लास्टिक के सेवन से कई वन्यजीवों की आंतें ब्लॉक हो रही हैं, जिससे उनकी मौत हो रही है।
रेलवे और वन विभाग की संयुक्त पहल
वन क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए रेलवे और वन विभाग मिलकर सफाई अभियान चला रहे हैं। हालांकि, इसके बावजूद समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।
- रेलवे ट्रैक के आसपास नियमित सफाई के निर्देश दिए गए हैं।
- जागरूकता अभियानों के माध्यम से यात्रियों से प्लास्टिक न फेंकने की अपील की जा रही है।
प्लास्टिक की सुगंध से आकर्षित हो रहे वन्यजीव
खाद्य पदार्थों की गंध वन्यजीवों को जंगलों से बाहर खींच रही है।
- भोजन के साथ प्लास्टिक फेंके जाने पर जानवर इसे खा जाते हैं।
- इससे उनकी पाचन क्रिया प्रभावित होती है और कई मामलों में उनकी जान चली जाती है।
वन्यजीवों की प्राकृतिक गतिविधियों पर प्रभाव
इंसानी गतिविधियों के कारण वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास प्रभावित हो रहा है।
- हिरण और सांभर जैसे शाकाहारी जीव जंगल के बाहर निकल रहे हैं, जिससे तेंदुआ और बाघ भी मानव बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं।
- भालू जैसे शिकारी वन्यजीव भी कचरे की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं।
समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदम
- कड़े नियम और दंड: जंगलों में प्लास्टिक फेंकने पर सख्त दंड और जुर्माना लगाया जाए।
- जागरूकता अभियान: पर्यटकों और स्थानीय लोगों को प्लास्टिक कचरे के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक किया जाए।
- इको-फ्रेंडली विकल्पों को बढ़ावा: प्लास्टिक के स्थान पर बायोडिग्रेडेबल उत्पादों को अपनाने की पहल की जाए।
- स्थायी सफाई अभियान: वन विभाग और स्थानीय संगठनों द्वारा नियमित सफाई अभियान चलाए जाएं।
निष्कर्ष
प्लास्टिक प्रदूषण केवल शहरों की ही नहीं, बल्कि जंगलों की भी विकराल समस्या बन गया है। यह न केवल वन्यजीवों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित कर रहा है। यदि समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया तो भविष्य में इसके और भी भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं। अतः, सरकार, पर्यावरणविदों और आम जनता को मिलकर इस समस्या के समाधान के लिए तत्परता से कार्य करना होगा।